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२६६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५)
प्रश्न होता है, दूध का चमत्कार तो हम सबका जाना माना है, दूध को इस प्रकार का प्रेरक अथवा दूध में शक्ति संचार कर्ता या स्फूर्तिप्रेरक कौन है ? यह सत्य है कि दूध के परमाणुओं में स्वतः ऐसी शक्ति निहित है, जो प्राणी के सेवन करते ही उसके मुाए हुए जीवन-पुष्प को विकसित कर देते हैं। सेवन कर्ता को दूध स्वयं ही स्फूर्ति और शक्ति के रूप में फल प्रदान करता है। जैसे-दूध जड़ है, अपनी गुणसम्पदा से सर्वथा अनभिज्ञ है, अपने में निहित विशिष्ट शक्तियों का उसे कोई ज्ञान नहीं है, फिर भी सेवन करने वाले व्यक्ति के जीवन में अपना फल प्रगट करता है; बौद्धिक और शारीरिक दृष्टि से उसे परिपोषण देता है; तथैव कर्म जड़ है, अपनी विशिष्ट शक्तियों से अनभिज्ञ है, फिर भी वह उसके कर्ता के जीवन को अपनी शक्तियों से चमत्कृत एवं प्रभावित करता है, कर्मकर्ता जीव को अच्छे-बुरे फल प्रदान करता है।'
___ मदिरा की फल देने की शक्ति से भी आप सब परिचित हैं। जब कोई व्यक्ति मद्यपान कर लेता है, देशी या विदेशी शराब, वाइन, व्हिस्की आदि पी लेता है, तो वह पीने वाले को नशा चढ़ाती है, नशे में धुत होकर वह उछलता, कूदता है, नाचता है, अंटशंट बकता है, गाली गलौज करता है, बेसुध होकर नालियों में गिर जाता है। और तो और, मद्यपान करने वाले की ऐसी घिनौनी और विकृत दशा हो जाती है कि कुत्ते भी उसके मुँह में पेशाब कर जाते हैं। मद्य या दूध पीने के बाद यह जरूरत नहीं होती कि उसका फल देने के लिए ईश्वर या कोई दूसरा नियामक आए।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मदिरा जड़ होते हुए भी उसके सेवन करने वाले को स्वयं अपना अशुभ फल प्रदान करती है; उसके जीवन को प्रभावित करती है। ज्ञानशून्य मिर्च और चीनी कैसे मुंह जला देती है और मीठा कर देती है
जड़ लाल मिर्च को क्या ज्ञान है खाने वाले आदमी का मुँह जलाने का? फिर भी वह खाने वाले का मुंह जलाती है। अधिक खाने वाला मुख से सी-सी शब्द करता है, उसके चेहरे पर पसीना आने लगता है। मिर्च को ऐसा फल देना किसने सिखाया था? परन्तु उसका स्वभाव ही ऐसा है कि उसमें ऐसी शक्ति पैदा हो जाती है, जिससे खाने वाले के मुंह को चरपरा कर देती है।
इसी प्रकार चीनी या चीनी की बनी हुई मिठाइयाँ खाने वाले का मुंह मीठा कर देती हैं। चीनी को क्या ज्ञान है, माधुर्य रूप फल देने का ? फिर भी जड़ चीनी के परमाणुओं में ऐसी शक्ति पैदा हो जाती है कि वह खाने-पीने वाले का मुँह मधुरता से
१. कर्मवाद से भावांश ग्रहण पृ. ३५-३६ २. ज्ञान का अमृत से भावांश ग्रहण पृ. ४२
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