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कर्म अपना फल कैसे देते हैं ? २६३
जैनकर्मविज्ञान का कथन है कि कर्म जड़ है, चेतनारहित है, इस सत्यता से कोई इन्कार नहीं है, कर्म पुद्गलों की जड़ता जैन जगत् में आबाल-वृद्ध प्रसिद्ध है, किन्तु जड़ कर्मपुद्गलों में कोई शक्ति नहीं है, वे सर्वथा शक्तिविहीन हैं, यह जानना और मानना कथमपि उचित नहीं है। संसार में कर्म के सिवाय अन्य अनेकों जड़ पदार्थ हैं। अणु-परमाणु भी जड़ हैं, औषधियाँ, दवाइयाँ, इंजेक्शन आदि भी जड़ हैं, रोटी, दूध, दही, घी, तेल, मिर्च, मसाले, मद्य आदि तथा अन्य पकाये हुए खाद्य पदार्थ भी जड़ हैं। संसार के समस्त पदार्थ बिना किसी की प्रेरणा के, अथवा बिना किसी ज्ञान के अपना प्रभाव दिखलाते ही हैं। जड़ पदार्थ अपने-अपने ढंग से, अपनी-अपनी शक्ति का चमत्कार बताते देखे गए हैं। इस तथ्य से कोई भी समझदार व्यक्ति इन्कार नहीं कर सकता कि अणुबम, परमाणु बम आदि जड़ पदार्थों ने हिरोशिमा और नागासाकी पर कितना कहर बरसा दिया? अणुबम का विस्फोट कितना भयंकर, कितना शक्तिशाली और संहारकारक, एवं विनाशक होता है ? इस तथ्य से सभी परिचित हैं। आहार ग्रहण करने के बाद की स्वतः प्रक्रिया की तरह कर्म ग्रहण के पश्चात् फलदान प्रक्रिया
हम आहार करते हैं। आहार के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं, खींचते हैं। उसके बाद वह आहार स्वतः पचाने वाले रस के साथ मिलकर पकता है। इसकी स्वतःक्रिया से वह सारे शरीर में फैला। जो सारभूत था, वह मस्तिष्क आदि विभिन्न अवयवों में गया। जो निःस्सार भाग था, वह मल-मूत्रादि बनकर बाहर निकला। बड़ी आंत में गया तो उत्सर्गक्रिया हुई। ये सब क्रियाएँ शरीर में आहार के पहुँचते ही स्वतः होने लगती हैं। आहार के उन गृहीत पुद्गलों का वर्गीकरण भी हो जाता है, विभाजन भी। आहार में गृहीत पुद्गलों के स्वभाव का भी स्वतः निर्णय हो जाता है। आहार पेट में डालने के पश्चात् व्यक्ति कोई भी क्रिया नहीं करता है-पचाने की; रस, रक्त, मांस, मज्जा आदि धातु स्वयं निर्मित होते चले जाते हैं। जहाँ जो होना है, वह स्वतः होता चला जाता है। शक्ति भी मिल जाती है और ऊर्जा भी। इसके सिवाय भी आहार करने के पश्चात् गृहीत खाद्य पदार्थ अपने-अपने स्वभाव के अनुसार काम करने लगते हैं। जैसे-किसी के शरीर में चिकनाई की आवश्यकता है, वहाँ खाये हुए स्निग्ध पदार्थ स्वयमेव उसकी पूर्ति कर देते हैं। जहाँ प्रोटीन, श्वेतसार या जिस-जिस विटामिन की जरूरत होती है, वहाँ वे पदार्थ भोजन के द्वारा पहुँच कर काम करने लगते हैं। दवा शरीर में जहाँ रोग है, वहाँ पहुँचकर काम करती है .. हमें यह बहुत आश्चर्यजनक लगता है कि शरीर के अमुक हिस्से में रोग होता है,
... १. वही, पृ. ४१
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