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१00 कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४)
मानव अतीत से विच्छिन्न होकर वर्तमान की व्याख्या नहीं कर सकता। जो भी वर्तमान क्षण का परिणाम है, उसके पीछे अतीत का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। आज के परिणाम के पीछे अतीत की प्रवृत्ति है और आज की-वर्तमान क्षण की प्रवृत्ति अनागत का परिणाम
इसलिए वर्तमान क्षण परिणाम भी है और भावी परिणाम का हेतु भी है। अर्थात वह प्रवृत्ति भी है, परिणाम भी है, कार्य भी है, कारण भी है। अतीत का कारण उसके पीछे है, इसलिये वह कार्य है और अनागत के कार्य का वह हेतु है, इसलिए कारण भी है।
अतः यह निश्चित है कि हम वर्तमान की व्याख्या अतीत से विच्छिन्न होकर नहीं कर सकते और न वर्तमान से विच्छिन्न होकर भविष्य की कल्पना कर सकते हैं। केवल वर्तमान के द्वारा हम जीवन के समस्त सत्यों को नहीं पकड़ सकते।' अतीत की पकड़ से मुक्त होने के लिए प्रतिक्रमण आवश्यक है ___ मनोविज्ञान ने इस तथ्य को और अधिक उजागर किया है। कोई भी मानसिक रोगी जब मनोचिकित्सक के पास जाता है, तब सबसे पहले उसकी वर्तमान मनःस्थिति के कारण का पता लगाने के लिए वह उस मनोरोगी के अतीत के बारे में पूछता है। वह मनोरोगी से स्पष्ट कहता है- 'मुझे यह बताओ कि पिछले वर्षों में क्या-क्या घटनाएं घटित हुईं ? तुमने क्या-क्या किया? कैसे किया? इस समय तुम वर्तमान को भूलकर एकदम अतीत में बचपन से लेकर अब तक के भूतकाल में चले जाओ। मुझे अपना पूरा इतिहास निःसंकोच सुनाओ।"
जिस प्रकार एक साधक को अपने वर्तमान जीवन की शुद्धि के लिए अतीत का प्रतिक्रमण करना (आलोचना, निन्दना और गर्हणा से युक्त होकर पुनः स्वस्थान में लौटना) होता है, उसी प्रकार मनोरोगी को भी अपनी रोग-निवृत्ति और स्वास्थ्य-प्राप्ति के लिए मनश्चिकित्सक के समक्ष अतीत का प्रतिक्रमण करना आवश्यक होता है। जब तक मनोरोगी अपने अतीत का प्रतिक्रमण नहीं कर लेता, तब तक मनोरोग-चिकित्सक उसकी चिकित्सा नहीं कर सकता। मनोरोग-चिकित्सक उससे अतीत की समस्त घटनाएँ सुनता है, उसकी मनोग्रन्थी को पकड़ लेता है और तब उसका सही निदान और यथार्थ चिकित्सा कर पाता है।
कर्मविज्ञान-मर्मज्ञ साधक भी कर्मसिद्धान्त की दृष्टि से प्रतिक्रमण करता है। प्रतिक्रमण अतीत का सिंहावलोकन है। उसमें अतीत को देखने, समझने और सम्प्रेक्षण
१. कर्मवाद पृ. २0 का भावांश मात्र २. वही पृ. १४0 का भावांश मात्र
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