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१०२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) अतीत से कर्म का सम्बन्ध क्यों और छूटता कैसे?
कर्म का सम्बन्ध अतीत से इस कारण भी है कि वह आत्मा के साथ चिरकाल तक बद्ध (संलग्न) रहता है। वह आत्मा के साथ संयोग सम्बन्ध जोड़ता है और सम्बन्ध जोड्ने के बाद लम्बे अर्से तक जुड़ा रहता है। वर्तमान जीवन के साथ कर्म का सम्बन्ध इस कारण है कि वह दीर्घकाल तक संयुक्त रहने के पश्चात एस दिन वियुक्त हो जाता है। कर्म आत्म के साथ सहज नहीं होता, वह आत्मा का स्वभाव या स्वगुण नहीं है। वह आगन्तुको आया हुआ है। कर्म एक दिन आता है और चला जाता है वह आत्मा के साथ सम्बन स्थापित करता है और जब तक अपना पूर्णतया प्रभाव नहीं डाल देता, तब तक टिक रहता है। प्रभाव डाल देने के बाद यानी व्यक्ति के लिए उस कर्म का फल भोग लेने के बा उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है, वह चला जाता है।' कर्म से संयुक्त और वियुक्त होने का त्रैकालिक रहस्य समझो ___ वस्तुतः कर्म से वियुक्त होने का क्षण है, वर्तमान क्षण और कर्म से संयुक्त होने का क्षण है-अतीत का क्षण। इन दोनों क्षणों को ठीक ढंग से समझ लिया जाए तो जैनकर्मविज्ञान के माध्यम से अतीत, वर्तमान और अनागत के साथ कर्म के संयुक्त और वियुक्त होने का सारा रहस्य समझ में आ सकता है। वस्तुतः कर्मसिद्धान्त के अनुसार कर्म की त्रैकालिक यात्रा में जो कर्म आत्मा के साथ पूर्णतया संयुक्त हैं, वे वियुक्त भी हो सकते
साधना का सूत्र है-वर्तमान में ही रहो
जहाँ तक साधना (संवर-निर्जरारूप कर्ममुक्ति की या धर्म की साधना) का प्रश्न है, उसका प्रधान सूत्र है-“वर्तमान में रहो, वर्तमान में केवल वर्तमान में जीना सीखो।" फलिताई यह है कि जिस समय जो कार्य या प्रवृत्ति कर रहे हो, उसी में उपयोगपूर्वक रहो, उसी प्रवृत्ति को यत्ला-चारपूर्वक करो। न तो अतीत की स्मृति में जाओ, और न भविष्य की कल्पना के समुद्र में गोत लगाओ। जीवन के त्रैकालिक सत्य को जानने-समझने के लिए तीनों कालों को जानना जरूरी
परन्तु यह कहना जितना आसान है, उतना करना आसान नहीं है। कर्मसिद्धान्त के अनुसार जहाँ कार्य-कारण की मीमांसा करने और त्रैकालिक सत्य को जानने-समझने का प्रश्न आता है, वहाँ केवल वर्तमान से काम नहीं चल सकता। वहाँ अतीत भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है, जितना वर्तमान है और जितना वर्तमान महत्त्वपूर्ण है, उतना ही
१. कर्मवाद से भावांश पृ.२१
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