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कर्मसिद्धान्त की त्रिकालोपयोगिता १०१
करने का अवसर मिलता है कि कहाँ-कहाँ कब-कब मूलसाधना का अतिक्रमण (आम्रव और बन्ध) हुआ है, और अब उसमें कहाँ कहाँ कैसे-कैसे संवर और निर्जरा के माध्यम से मूल स्थिति में आना है। अतीत का प्रतिक्रमणविशेषज्ञ वर्तमान और भविष्य को सुधार सकता है
जो व्यक्ति कर्मविज्ञान की दृष्टि से अतीत का प्रतिक्रमण करना जानता है, वह अतीत में हुए अशुभ कर्मों के आनव और बन्ध के कारण प्राप्त हुई वर्तमान परिस्थिति को स्वीकार करता है और वर्तमान में संवर और निर्जरा की साधना अपनाकर पूर्वोक्त परिस्थिति में सुधार कर लेता है। अपनी आत्मा को कर्मों के बन्धन से मुक्त करने एवं नये आते हुए अशुभ कर्मों को रोकने का अभ्यास करता है, जिससे उसका भविष्य भी उज्ज्वल बन जाता है। जीवन की समस्त अवस्थाएँ अतीतकृत कर्म से अनुस्यूत
जीवन की समस्त महत्त्वपूर्ण अवस्थाएँ, परिस्थितियाँ, संयोग-वियोगजन्य घटनाएँ आदि सारे पहलू कर्म के साथ अनुस्यूत हैं, जुड़े हुए हैं और इन सबका फलित होता है-अतीत से बद्ध वर्तमान जीवन। जीवन के समग्र पक्ष-शरीर से सम्बद्ध माता-पिता, भाई-बहन, तथा अन्य कुटुम्बीजन, स्वजन-परिजन आदि सजीव और शरीर से सम्बद्ध शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, हृदय, चित्त, अंगोपांग, संस्थान, संहनन आदि तथा क्षेत्र, मकान आदि निर्जीव जो भी पदार्थ वर्तमान में उपलब्ध होते हैं, वे सब अतीत के कर्म से जुड़े हुए हैं।
इसी कारण कर्मसिद्धान्त को मानने वाले व्यक्ति में प्रायः यह धारणा या मान्यता बद्धमूल हो जाती है कि मानव का समग्र व्यक्तित्व अथवा उसका समग्र वर्तमान जीवन अतीतकालकृत कर्म से बंधा हुआ है। अतीत की पकड़ से मुक्त होने में समर्थ या असमर्थ? ... इसके साथ ही एक भ्रान्ति और व्याप्त है-कर्मविज्ञान के सम्बन्ध में कि “अतीत की यह जो पकड़ या जकड़ है, उसे छोड़ने में मनुष्य समर्थ नहीं है''। यह धारणा इस कारण बनी हुई है कि मनुष्य के अपने चारों आत्मिक गुण-ज्ञान, दर्शन, शक्ति और आनन्द वर्तमान में आवृत हैं, कर्मों से जकड़े हुए हैं, फिर शरीर आदि से सम्बद्ध अन्य शक्तियाँ आदि भी कर्मावृत हैं, अवरुद्ध हैं। अतः मनुष्य अतीत के कर्मों के अधीन है, उसका वर्तमान अतीत से बंधा हुआ है।
१. कर्मवाद से भावांश मात्र पृ.१२२
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