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कर्मसिद्धान्त की त्रिकालोपयोगिता
कर्मसिद्धान्त : त्रिकाल-प्रकाशक दीपक
कर्मसिद्धान्त एक ऐसा प्रकाशमान दीपक है, जो तीनों कालों में प्रकाश करता है। वह अतीत में भी प्रकाश करता रहा, वर्तमान में भी प्रकाश करता है और भविष्य में भी प्रकाश करता रहेगा। उसकी ज्योति कभी बुझती नहीं है।
इसका रहस्यार्थ यह है कि कर्मसिद्धान्त ने भतकाल में भी जो समस्याएँ आई. उनका समाधान दिया है, वर्तमान में वह समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है और भविष्य की दूरगामी समस्याओं का भी समाधान करने में समर्थ है।
जो विज्ञान या दर्शन जन-मानस के वर्तमान अन्धकार को मिटाने में सक्षम नहीं है, वह विश्वसनीय एवं लोकग्राह्य नहीं हो सकता, उसकी प्रासंगिकता या प्रस्तुति नाम मात्र की होती है। उसकी जीवन्तता मृतवत् होती है। वह बुझी हुई ज्योति का प्रतिनिधि है। - जैन कर्मविज्ञान अतीत और अनागत के अन्धकार को मिटाने के साथ-साथ वर्तमान के जनमानस में व्याप्त अन्धकार को भी मिटाने में पूर्णतया सक्षम है, उपयोगी है। यदि कोई व्यक्ति यह कहे कि मेरा दीपक भूतकाल में बहुत ही आलोक करता था, परन्तु आज के अंधेरे को मिटाने में वह असमर्थ है तो उसकी उपयोगिता क्या है ? वह दीपक किस काम का, जो केवल अतीत के अंधेरे को मिटाने में समर्थ हो, वर्तमान में स्वयं अन्धकार का साथी बन जाता हो? जो वर्तमान के समस्याग्रस्त अन्धेरे को मिटाने में समर्थ हो, वही दीपक उपयोगी होता है। उसकी उपयोगिता और लोक-ग्राह्यता से कोई इन्कार नहीं कर सकता। इसी प्रकार यदि कोई विज्ञान-दीपक वर्तमान समस्याओं का यथार्थ निराकरण सैद्धान्तिक दृष्टि से नहीं कर पाता तो वह केवल मिट्टी के पिण्डवत् अनुपयोगी है। कर्म-विज्ञान वर्तमान में अनेक समस्याओं से घिरे जनमानस के अन्धकार को,अविवेक और अज्ञान को मिटाने में पूरी तरह सक्षम है।'
१. कर्मवाद से भावांश उद्धृत पृ.१५०
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