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व्यावहारिक जीवन में-कर्म-सिद्धान्त की उपयोगिता ४५
विश्वास को कर्मसिद्धान्त सुदृढ़ कर देता है। फलत. दुःख के कारण को वह स्वयं में ढूँढ़ता है; उसके लिए न तो दूसरे को कोसता है और न ही घबराता है।
इस प्रकार के विश्वास से मनुष्य के हृदय में इतना बल और साहस पैदा होता है, जिससे साधारण संकट के समय व्याकूल होने वाला मानव' बड़ी-बड़ी विपत्तियों को कुछ नहीं समझता। जीवन में आने वाली उलझनों को कर्मसिद्धान्त के सहारे शीघ्र सुलझा लेता है। इस प्रकार कर्मसिद्धान्त अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में मानव को दीपक की लौ की तरह नहीं, अपितु ध्रुव की तरह अटल रहना सिखाता है।
कर्मसिद्धान्त साधक को आँधी और तूफान में हिमालय की तरह हर परिस्थिति में स्थिर रहना सिखाता है। वह अतीत के जीवन को स्मृति पर उभार कर अनागत जीवन को परिष्कृत करने की प्रेरणा देता है। मानव जाति में जो कुछ भी नैतिकता, पापभीरुता एवं धीरता की झलक दिखाई देती है, वह कर्मसिद्धान्त पर विश्वास का सुफल है। किसी भी सत्कार्य में सफलता के लिए जिस हार्दिक शान्ति व एकाग्रता की आवश्यकता है, वह कर्मसिद्धान्त पर अटल विश्वास से ही हो सकती है। कर्मसिद्धान्त की उपयोगिता के विषय में मेक्समूलर का मत ____ कर्मसिद्धान्त की उपयोगिता के विषय में जर्मन विद्वान डॉ. मेक्समूलर का मन्तव्य विचारणीय हैं-“यह तो निश्चित है कि कर्ममत का असर मानव-जीवन पर बेहद हुआ है। यदि किसी मनुष्य को यह ज्ञात हो जाये कि वर्तमान अपराध के सिवाय भी मुझे जो कुछ भोगना पड़ता है, वह मेरे पूर्वजन्म के कर्म का ही फल है, तो वह पुराने कर्ज को चुकाने वाले मनुष्य की तरह शान्तभाव से उस कष्ट को सहन कर लेगा और वह मनुष्य इतना भी जानता हो कि सहनशीलता से पुराना कर्ज चुकाया जा सकता है तथा उसी से भविष्य के लिए नीति की समृद्धि इकट्ठी की जा सकती है, तो उसको भलाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा अपने आप ही प्राप्त होगी। अच्छा या बुरा कोई भी कर्म नष्ट नहीं होता, यह नीतिशास्त्र का मत और पदार्थ-शास्त्र का बल-संरक्षण-सम्बन्धी मत समान ही हैं। दोनों मतों का आशय इतना ही है कि किसी का नाश नहीं होता। किसी भी नीतिशिक्षा के अस्तित्व के सम्बन्ध में कितनी ही शंका क्यों न हो पर यह निर्विवाद सिद्ध है कि कर्ममत सबसे अधिक जगह माना गया है। उससे लाखों मनुष्यों के कष्ट कम हुए हैं और उसी मत से मनुष्यों को वर्तमान संकट झेलने की शक्ति पैदा करने तथा भविष्य में जीवन को सुधारने में उत्तेजन मिलता है।
१. कर्मग्रन्थ भा. १ प्रस्तावना ( प. सुखलाल जी) से भावांश पृ. ६ २. कर्मप्रकृति (सं. देवराज जैन) की प्रस्तावना पृ.२५ ।। ३. कर्मग्रन्थ भा. १, प्रस्तावना (पं. सुखलालजी) में प्रकाशित विचार .७.
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