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बीकानेर के व्याख्यान ]
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कच्चे घड़े पर बेलबँटे बना दिये जाते हैं वे घड़ के पकने पर भी नहीं मिटते । लेकिन पके घड़े पर बनाये हुए बेलबूटे कायम नहीं रहते । यही बात बाल्यावस्था के विषय में है । अतएव जीवननिर्माण की दृष्टि से बाल्यावस्था का मूल्य बहुत अधिक है। माता-पिता को यह बात दिल में बिठा लेना चाहिए कि बालक के संस्कार, चाहे वे भले हों या बुरे हों, जीवन भर जाने वाले नहीं हैं । अतएव उन्हें बुरे संस्कारों से बचकर अच्छे संस्कारों से सुसंस्कृत करना चाहिए । अगर बालकों को प्रारम्भ से ही खराब बोलचाल और खानपान से बचाते रहो तो आगे चलकर वे इतने उत्तम बनेंगे कि आपका गृहस्थजीवन सुखमय शांतिमय और संतोषमय
बन आयगा ।
कविसम्राट् स्वीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने एक निबन्ध में लिखा है कि पाँच वर्ष तक के बालक को सिला हुआ कपड़ा पहनाना उसकी वृद्धि में बाधा डालना है । खुले शरीर में जो कांति आ सकती है, वह सिले कपड़ों से बन्द किये हुए शरीर में नहीं आ सकती । चुस्त कपड़ों से बालक के शरीर का विकास भी रुक जाता है । ऐसी स्थिति में यह समझना कठिन नहीं है कि गहनों से भी बालक का विकास अवरुद्ध हो जाता है । जो बालक 'सोना' शब्द का उच्चारण भी नहीं कर सकता, न सोने को पहिचानता ही है, उसे सोना पहि
नाने से क्या लाभ है ? सोना बालक से प्राणों का ग्राहक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com