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[जवाहर-किरणावली
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कियों को उलटी शिक्षा दी जाती है। कन्या को ऐसा विनयशील होना आवश्यक है, जिससे गृहस्थावस्था में वह अपने परिवार को शांति दे सके, स्वयं शांति प्राप्त कर सके और कुटुम्बजीवन पूरी तरह आनन्दमय हो सके।
बीकानेर में लड़कियों को लड़के के भेष में रखने की प्रथा देखी जाती है। मेरी समझ में ही नहीं आता कि ऐसा करने से क्या लाभ है ? पुरुष की पोशाक पहिनने से कोई स्त्री पुरुष तो हो ही नहीं सकती ! संभव है, कन्या के माता-पिता उसे लड़के की पोशाक पहना कर सोचते हों-लड़के की पोशाक पहिनकर हम कन्या की लड़का होने की भावना पूरी कर रहे हैं ! मगर ऐसा करने से क्या हानि होती है, इस बात पर उन्होंने विचार नहीं किया। लड़की को लड़का बनाने का विचार करना प्रकृति से युद्ध करना है। प्रकृति से युद्ध करके कोई विजय नहीं पा सकता। फल यह होता है कि ऐसा करने से लड़की के संस्कार बिगड़ जाते हैं। कोई-कोई बचपन के मूल्य को नहीं समझते । वे बाल्यावस्था को निरर्थक ही मानते हैं। पर बाल्यावस्था में ग्रहण किये हुए संस्कारों के आधार पर ही बालक के सम्पूर्ण जीवन का निर्माण होता है। जिसका बालकपन बिगड़ गया उसका सारा जीवन बिगड़ गया और जिसका बालकपन सुधर गया उसका सारा जीवन सुधर गया । किसी कवि ने कहा है
यसवे भाजने नग्नः संस्कारो नान्यथा भवेत् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com