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[ जवाहर - किरणावली
है, वह मेरी प्रजा असमय में ही मर रही है ! मेरा सारा परिश्रम व्यर्थ हो रहा है ! मेरे राजा रहते प्रजा को कष्ट होना मेरे पाप का कारण है ।' पहले के राजा, राज्य में दुष्काल पड़ना, रोग फैलना, प्रजा का दुःखी होना आदि अपने पाप का ही फल समझते थे ।
रामायण में लिखा है कि एक ब्राह्मण का लड़का बचपन में ही मर गया । ब्राह्मण उस लड़के को लेकर रामचन्द्रजी के पास गया और बोला- आपने क्या पाप किया है कि मेरा लड़का मर गया ?
इस उल्लेख से ज्ञात होता है कि पहले के राजा प्रजा के कष्ट का कारण अपना ही पाप समझते थे । इसी भावना के अनुसार महाराज अश्वसेन मरी फैलने का अपना ही दोष मान कर दुःखी हुए । उन्होंने एकान्त में जाकर निश्चय किया कि जब तक प्रजा का दुःख दूर न होगा, मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा ।
सुदृढ़ निश्चय में बड़ा बल होता है। भक्त तुकाराम ने कहा है
निश्चयाचा बल तुका म्हणे तो च फल |
निश्चय के विना फल की प्राप्ति नहीं होती ।
इस प्रकार निश्चय करके महाराज अश्वसेन ध्यान लगा कर बैठ गये । भोजन का समय होने पर महारानी अचला ने दासी को भेजा कि वह महाराज को भोजन करने के लिए
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