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[ जवाहर-किरणावली
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_____उधर फहराती हुई ध्वजा कहती है—में तीन लोक की विजयपताका हूँ। मुझे अपनाइए । मंगलकलश कहता हैमेरा नाम तभी सार्थक है जब आप मुझे ग्रहण करलें । मानसरोवर कहता है यह मंगल कलश मेरे से ही बना है । में
और किसके पास जाऊँ ? मैं संसार के मानस का प्रतिनिधि होकर आया हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि तू सब के मानस में प्रवेश कर और उसे उज्ज्वल बना । क्षीरसागर कहता हैयह सरोवर तो छोटा-सा है। लेकिन अगर श्राप मुझे न धारण करेंगे तो में कहाँ रहूँगा ? प्रभो ! इस संसार को अमृतमय कर दो । संसार मुझ से अतृप्त है, अतः आप उसे तृप्न कीजिए।
इस प्रकार उषा काल की सूचना देकर भगवान् शांतिनाथ सर्वार्थसिद्ध विमान से महारानी अचला के गर्भ में पाये । मव देवी-देवताओं ने भगवान से प्रार्थना की-प्रभो सब लोग अपने-अपने पक्ष में पड़े हुए हैं। आप संसार का उद्धार कीजिये । हमारे सिर पर भी आशीर्वाद का हाथ फेरिये ।
लोकोत्तर स्वप्नों ने मानों अचला महारानी को बधाई दी। उसके बाद अचला महारानी के गर्भ में भगवान् का आगमन हुश्रा । क्रमशः गर्भ की वृद्धि होने लगी। __ जिन दिनों भगवान् शान्तिनाथ गर्भ में थे, उन्हीं दिनों महाराज अश्वसेन के राज्य में महामारी का रोग फैल गया ।
प्रश्न हो सकता है कि जब भगवान् गर्भ में प्राये तो रोग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com