________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Avvvv
समाक्षा मनुष्य गोणरूप होय है । जब केवल एक अभेदमात्र अंशकू अंशो नामा ग्रहण करे तब तो द्रव्याथिक नय है। तहां अभेदपक्ष मुख्य है, भेद पक्ष गौण है । वहुरि जब भेदरूप अंशनिकू जुदे जुदे ग्रहण करे । तहां पर्यायार्थिक नय है यहा अभेदरूप है। भेद पक्ष मुख्य है । तहां भी किसी एक अंशकू मुख्य करें तब दूसरा अंश गोण रहै । ऐसे सर्व हा जीवादिक पदार्थ प्रमाण नय करि सत्यार्थी प्रतिभासे हैं । जो सर्वथा एकान्तकी पक्ष सो कल्पना मिथ्या है । जाते कल्पनामात्र ही है। मिथ्यात्व कर्मके उदयते यह निपज़ा है । वस्तु स्वरूप तो कल्पित है नाहीं । ___ इस उपरोक्त कथन से प्रमाण, लय और निक्षेपों के द्वारा वस्तु में व्यवहार प्रवृत्रि किस प्रकार होती है उसका स्पष्टीकरण मनुष्य के दृष्टान्त से हो जाता है। पदार्थ गुण और पर्याय मंयुक्त होने से उसका कथन भी भेदाभेद रूप वस्तु से किया जा सक्ता है । अतः भेदाभेद, रूप वस्तु का ग्रहण करने वाला प्रमाग है । तथा नय है वह वस्तु के अंश का ग्रहण करने वाला है वहां पर मनुष्य रूप वस्तु गौण है। निश्चय नय केवल अभेद मात्र अंशी नामा मनुष्य अंश का प्रहण करने वाला है। यहां पर अभेद पक्ष मुख्य है और भेद पक्ष गौण है । व्यवहार नब वस्तु के भेद रूप अंशों को अलग अलग ग्रहण करता है, वहां पर भेद दृष्टि मुख्य है प्रभेद पक्ष गोण है.. इस तरह सर्व ही जीवादि पदार्थ प्रमाण, नय निक्षेपों से सत्यार्थ ही प्रतिभासे हैं सारांश यह है कि जब पदार्थ का प्रतिपादन मुख्य और गौण से किया जाता है तब ही पदार्थ का स्वरूप बनता है।
"अर्पितानर्पितसिद्ध”। तत्त्वार्थ सूत्र टीका--अनेकान्तात्मकस्य वस्तुनः प्रयोजनक्शायस्य कस्यचिद्धर्मस्य विवक्षया प्रापितं प्रधानमर्पितमुप
For Private And Personal Use Only