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समोक्षा __अर्थात् जैसा जैसा निमित्तों के अनुसार भविष्यमें हमारा परिणमन होने वाला है वह सब वीतरागके ज्ञानमें झलक चुका है सो ही होगा इसके अतिरिक्त अणहोनी कुछ भी नहीं होगी अर्थात् होनेवाली बात ही होगी इसलिये तुझको अधीर होने की जरूरत नहीं है। इस कथन का सारांश यही है कोई श्रकस्मात् भयसे भयभीत है उनको धैर्य धारण करानेके लिये ऐसा कहा गया है। न कि क्रमबद्ध पर्यायकी सिद्धि करने के लिए ऐसा कहा गया है। जो व्यक्ति इस कथनका क्रमबद्ध पर्यायकी अपेक्षा मानते हैं वे पुरुषार्थ हीन है क्यों कि उसकी विचारधारामें यह बात समा जाती है कि जैसा केवली के ज्ञानमें झलका है वैसा ही होगा इसलिये हमको पुरुषार्थ करनेकी जरूरत नहीं इसलिये ऐसी मान्यताको श्राचार्योंने पाखंड वोलकर कहा है। पाखंडियों को भगवानके वचनों पर विश्वास नहीं होता इसलिये वे मनकल्पित अनेक प्रकार का सिद्धान्त बना लेते हैं।
वीतराग भगवानके ज्ञानमें जैसी जिसप्रकार हमारी पर्यायें होने वाली झलकी हैं वैसी ही उसी प्रकार हमारी पर्यायें होगों इसमें कुछ भी संदेह नहीं हैं किन्तु इसको हम हमारी क्रमवद्ध पर्याय मान लें तो यही हमारी एक पहले सिरे की महान मूर्खता है क्योंकि भगवानके ज्ञानके साथ हमारे परिणमन होने का कोई सम्बन्ध नही हमारा परिणमन स्वतंत्र है वह क्रमवद्ध भी होता है और अक्रमबद्ध भी होता है। यदि हम हमाग परिणमन क्रमवद्ध मानलें तो हमारे मुक्ति को नही होगी इसका कारण यह है कि जबतक हमारे पूर्व सचित कर्मोका सविपाक क्रमवद्ध निर्जरा होती रहेगी तबतक कोंसे हमारा छुटकारा नही होगा क्योंकि पुरातन कोंके उदयानुसार ही हमारा परिणमन होगा और उस पारणमन के अनुसार हमारे नवीन कर्मोंका बन्ध
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