Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 376
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनवाणी प्रचार करना हर एक आत्महितैषी का कर्तव्य है / पुत्र पुत्रियोंके विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों और तीर्थयात्रा आदि पुण्य कार्योंकी स्मृति चिरस्थायी करनेके लिये अपने इष्ट मित्रों में उपहार बांटनेकी जरूरत होती हैं / उस समय आप अन्य पदार्थ न बांटकर यदि संस्थाके पवित्र प्रेसमें छपे उत्तमोत्तम ग्रन्थों को खरीदकर उपहार बाटे तो आप का और आपके इष्ट बन्धुओंका आत्मकल्याण हो जाय, चंचल लक्ष्मी स्थिर हो जाय। ___ संस्थाके एक साथ कम से कम पचास रुपयेके ग्रन्थ बांटने वालों का नाम उन ग्रन्थों में बिना किसी अतिरिक्त खर्च के छपाकर चिपका देगी। संस्थाके ग्रन्थ लागत दाममें दिये जाते हैं कारण यह संस्था धर्म प्रचारार्थ दान देकर जिनवाणी भक्त लोगोंने स्थानित की है और इसके मन्त्री महामंत्री मूलसंस्थापक संरक्षक संस्थापक सब निःस्वार्थ भावसे तन मन धन लगाकर सेवा करते हैं। कोई भी इससे आर्थिक लाभ नहीं उठाते / ___ आपका भी कर्तव्य है कि इस जिनवाणी प्रचार में स्वयं स्वाध्यायार्थ ग्रन्थ लेकर इष्ट मित्रों तथा पुस्तकालयों और शास्त्र भंडारोंमें लेने की प्रेरणा कर सहायक बनें। श्रीशांतिसागरजैनसिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था आचार्यश्रीशांतिवीरनगर, पो० श्रीमहावीरजी (राजस्थान) For Private And Personal Use Only

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