Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 330
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन तत्त्व मीमांसा की अथवा टेकी रोटी बाटी विना बनानेवालेके, तथा विना अग्नि पानी आदि साधनोंके अपने आप बनती हो तो मन कर दिखलानें । या रेलगाडी मोटर गाडी आदि को ड्राइवर के विना अथवा पेट्रोल पटरी अग्नि पानीके विना केवल उनकी योग्यता से चलती हो तो चलाकर दिखलावें । अन्यथा निमित्त कारण की सार्थकता स्वीकार करें । निमित्त कारण उदासीन रूप भी होते है जैसे कालद्रव्य आदि रेलकी पटरी आदि ये उदासीन कारण हैं। ड्राइवर माष्टर रसोइया कुम्भकारादि प्रेरक निमित्त कारण हैं दान कारण पेट्रोल अग्नि पानी हवा आदि ये बलदान चारण । सहायक कारण सहायता करने वाला मदद पहुंचानेवाला उपकार करनेवाला सहायक कारण कहलाते हैं। ये सब निमित्त कारण आगम निर्णीत हैं उपादान के द्वारा होनेवाले कार्य में ये निमित्त कारण सहायता करते हैं प्रेरण करते हैं बल बढाते हैं । और साथी भी वन जाते हैं । इन निमित्त कारणोंक विना उपा दान पंगु हैं उनकी योग्यता कुछ भी काम नहीं देती । यांद उपादान की योग्यता से ही कार्य होजाता है ऐसा मान लिया जाय तो दूरानदूर भव्य, मोक्ष क्यों नहीं जाते क्या उनमें भव्यत्व गुण नहीं है ? क्या सम्यग्दर्शनादि प्राप्त करने की योग्यता उन में नहीं है ? सब कुछ है । पर उनको उनकी योग्यता के अनुरूप परिणमन करनेका निमित्तकारण नहीं मिलता इसलिये उनको योग्यता का कुछ भी कार्य नहीं होता । आपका जो यह कहना है कि- " अधिकतर स्थलों में जीवको उध्वगमन स्वभावाला कहा है । लोकान्त गमन स्वभाववाला नहीं कहा है। इसलिये यह प्रश्न होता है कि जब जीव ऊर्ध्वगमन स्वभाव वाला है तो वह लोकक ही क्यों स्थित हो जाते हैं । अपने ऊर्ध्वगमन स्वभावक कारण वह लोकान्तको उल्लङ्घन कर आगे क्यों नहीं चला जाता. For Private And Personal Use Only

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