Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 338
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - - - ३३० जैन तत्त्व मीमांसा को " एदेसु य उवयोगी तिविही शुद्धो णिरंजणो भावो जं सो करेदि भावं उपयोगो, तस्स सो कत्ता" २२ टीका-- अथैवमयमनादि वस्त्वंतरभूत मोह रक्त वादात्मन्युत्प्लवमानेषु मिथ्यादर्शनाज्ञानाविरतिभावेषु परिणाम विकारेषु त्रिष्येतेषु निमित्त भूतेषु परमार्थतः शुद्ध निरंजनानादिनिधन वस्तु गर्व म्बभूत चिन्मात्र भावत्वेनेसविधोप्यशुद्ध सांज नानकमावत्वमापद्यमानस्त्रिविधो भूत्वा स्वयमज्ञानीभृतः कतत्वप्नुपढोकमानो विकारसा परिणम्य यं यं भावनात्मनः करोति तस्य किलोपयोगः कर्तास्यात् गथात्मनस्त्रिविध परिणाम विकार कत - स्वे सति पुद्गलद्रव्यं स्वतएव कर्मत्वेन परिणमतीत्याह ।। भावार्थ--पूर्वे कहा है जो परिणमे सो कर्ता है सो यहां अज्ञान रूप होय उपयोग परिणम्या जिस रूप परिणम्या तिसका कतो कह्या शुद्ध द्रव्याथिक नय करि आत्मा कर्ता है नाही इहां उपयोगकू कर्ता जानना । बहुरि उपयोग अर आत्मा एक ही वस्तु है ताते श्रात्मा ही कूकर्ता कहिये। आगे आत्म:के तीन प्रकार परिणाम विकार का कर्तापण होते संते पुद्गल द्रव्य है सो आप ही कर्मपणा रूप होय परिणमें है ऐसे कहै हैं। गाथा--जं कुणादि भावमादा कत्ता सो होदि तरस भावस्स कम्मत्तं परिगमदे तहि सयं पुग्गलं दव्यं ।। २३ ॥ ___टीका:-----आत्माह्यात्मना तथा परिण मनेन यं भावं किल करोति तस्यायं कर्तास्यात्साधक दत् तस्मिन्निमिते. For Private And Personal Use Only

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