Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 367
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा rammmmm.inma..inmurnmarrrrrrrammmmmmmmmmmarnam रहने वालेको सद्गुरु मानना यह क्या है ? महान तोत्र मिथ्यात्वके उद का कारण है क्योंकि व्यवहार धर्मका लोप करने वालों को दृष्टिमें । षयभोगोंके सेवनकी सरगतामें और पूजा दानादिक करनेकी मरागनामें कुछ भी अंतर नहीं भासता है । यदि भासता है तो इतना ही भासता है कि एक लोहको वेडी है और वह मोनेकी वेडी है अत: दोनों ही वेडी है किन्तु यह बात नहीं है ऊपरके दृष्टान्तसे यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यवहार धर्म मोक्षमार्ग है इस लिये आचार्योंने इस व्यवहार धर्मके साधन करनेका आदेश दिया है। यदि यह व्यवहार धर्म संसार का कारण होता तो क्या जीवों को संसारमें रुलानेका आचार्य उपदेश देते ? कभी नहीं । " दुविहं संजमचरणं सायारं तह हवे निरायारं मायारं मग्गंथे परिग्गहा रहिय खलु निरायारं" २० दसणवयसामाइयोसहसचितरायभत्तेय । 'भारं भपरिग्गह अणुमण उदिट्ट देस विरदो य ।। २१ चारित्रपाहुड कुन्दकुन्द आचार्य कहते है कि दान और पूजा करनेवाला भाक्षमागम दाड लगाता है । देखो रयणसार" जिणपूजा घुणिदाणं करेइ जो देई सचिरूवेण । सम्माइट्ठी सावय धम्मी सो होइ मोक्खमग्गरओ" १३ तथा और भी-- इह णियसुवित्तबीयं जो ववइ जिणुत्त सत्तखेसु । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376