Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 365
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा ३५७ • - - .....- marrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. ramreminararw.m ( ३ ) प्राप्य ऐसे कर्मत्व परिणमनरूपमे कर्मपनेको संपादन करता है (४) पूर्व भावका नाश हो जाने पर भी ध्र वपनेका अवलम्बन करने से अप,दानपने को प्त होता है । (५) उपजनेवाले परिणाम रूप कर्म द्वारा आश्रयमाण होनेसे सम्प्रदानपने को प्राप्त करता है । (६) धारण किये जाते हुये परिणाम का आधार होनेसे अधिकरणपनेको ग्रहण करता है । इसी प्रकार स्वयं हा पुद्गल षटकारक रूप परिणमन करता है। उसी प्रकार जाव भी ( १ ) भाव पर्याय रूपसे प्रवर्तमान आत्म द्रव्यरूपसे कर्तृत्वको धारण करता है। ( - ) भावपर्यायका प्राप्त करनेकी शक्तिरूपसे करणपना अंगीकार करता है । (३) प्राप्य ऐसी भावपर्यायरूपसे कर्मपनको स्वीकार करता है । (४) पूर्व भाव पर्यायका नाश होने पर भी ध्रु बत्वका अवलम्बन होनेसे अपादानपने को प्राप्त होता है (७) उपजाने वाले भाव पर्यायरूप कर्मद्वारा आश्रयमाण होनेसे सम्प्रदानपनेको प्राप्त होता है । (६) धारण की जाती हुई भावपर्यायका आधार होनेसे अधिकरणपने को प्राप्त होता है । इस प्रकार स्वयं ही जीव षट् कारक रूप परिणमन करता है यद्यपि निश्चयसे कर्मरूप कर्ताका जीव कर्ता नही है। और जीवरूप कर्ताका कर्म कर्ता नहीं है । तथापि जीवके रागादि विभावोंके विना निमित्तके न तो पुद्गल कर्मरूप परिणमन करता है। और द्रव्य कर्म के निमित्त विना न जीव ही रागद्वेष रूप परिणमन करता है इस बातको हम पहले अच्छी तरह सप्रम ण सिद्ध कर चुके हैं इसलिये यहां उसे दुहरानेकी आवश्यक्ता नहीं है । जीवके राग द्वेष रूप परिणाम होने में द्रव्यकर्म निमित्त पडता है और पुद्गल द्रव्य कर्मरूप होनेमें जीवके रागद्वेष परिणाम निमित्तभूत होते हैं ऐसा होने में इनके परस्पर निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध हैं इस बातको आप भी अस्वीकार नहीं करसकते फिर निमित्त अकिंचित For Private And Personal Use Only

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