Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 364
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ जैन तत्त्व मीमांसा की परिणमन करता है यदि वह परिणमन शील न हो तो दूसरा द्रव्य उसको परिणमन नहीं करा सकता ऐमा होने पर भी प्रत्यक पदार्थ निमित्तानुसार ही परिणमन करता है यह अटल सिद्धान्त हैं यदि मिट्टीको कुम्भकारादिका निमित्त न मिले तो वह स्वयं घटरूप परिणमन करनेमें असमर्थ है घट रूप परिणमन करने चाली मिट्टी में घटरूप परिणमन करनेका बल ( योग्यता ) यिना कुम्भाकारादि निर्मितोंके असिद्ध है। इस बातको आप भी स्वीकार करते हैं “ उपादान के अपने परिणमनरूप क्रिया व्यापार के समय ये कुम्भका र आदि वलाधान निमित्त होते हैं । इतना अवश्य है " जैन तत्त्व मीमांसा पृष्ठ १३४ जब बलाधान निमित्तके ( कुम्भकारादिके ) होने पर ही मिट्टी घटरूप परिणमन करती हे अन्यथा नहीं तब निमित्त अकिंचितक र कैसा ? अतः यह भय दिखलाना कि उपादानके परिणमनमें दूसरा द्रव्य निमित्त मान लेनेसे वह स्वयं उ.परिणामः ठहरता है मह निःसार बात है क्यों कि- दूसरे पदार्थके निमित्तानुसार परिणमन करना यह जीव और पुद्गलमें स्वयं परिणमन शालता सिद्ध होती है । तथा जीव ार पुद्गलका अनादिकालसे पार. स्परिक सम्बन्ध चला आरहा है इसलिये जैसा जैसा इनको निमित्त मिले वैसा वैसा यह दोनों परिणमन करते रहते हैं जव नक इनका पारस्परिक सम्बन्ध रहेगा तव तक यह निमित्तानुमार परिणमन करते रहेगे। अतः षट् कारकोंकी प्रवृत्ति स्वयं सपादानमें होते हुये भी वह प्रवृत्ति वाह्य निमित्तानुसार ही होती है यह वात असिद्ध नहीं है । अर्थात् निश्चयसे अभिन्न कारक होने से कर्म और जीव स्वयं अपने २ स्वरूप के कर्ता है कर्म कर्मरूपसे प्रवर्तमान पुद्गल स्कन्ध रूपसे कर्तृत्वको प्राप्त होता है । (6) कर्म पणा प्राप्त करनेकी शक्तिरूप करणपणे को अगीकार करता है। For Private And Personal Use Only

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