Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 357
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org समीक्षा ३४६८ विना निमित्त कार्योत्पत्ति नही होती ऐसा माननेमें आप को यह भय लगता है । कि एसा माननेके उपादान अपरिणामां ठहरता है इसलिये आप निमित्त को अकिचित्कर मानते हैं यह आप की भ्रम धारणा है। क्योंकि सर्व पदार्थ परिणमन: शील है चाहे शुद्ध द्रव्य हो चाहे अशुद्ध हो सबमें परिणमन शक्ति मौजूद है तो भी उस परिणमन में निमित्त की आवश्यक्ता पडती है। धर्म अधर्म आकाश और शुद्ध जीव तथा शुद्ध पुद्गल परमाणु इनके षट गुण हानि वृद्धि रूप परिणमन में काल द्रव्य निमिन कारण पडता है इस बातको आप भी स्वीकार करेंगें फिर निमित्त अकिंचित् कर है वह केवल कार्य के समय उपस्थित रहता है ऐसा कहना न्याय आगम और युक्ति से सवर्थ शून्य है क्योंकि ऐसा आप लोग एक भी कार्यकी उत्पति नही बता सकेंगे जो निमित्त तो खडा खड़ा देखता रहे और उपादानसे स्वयं में कार्य का निर्माण होजाय अतः निमित्तों को अकिचितकर ठह राकर मोक्षमार्गका साधन भूत देवपूजा गुरूपास्ति स्वाध्याय तीर्थयात्रादि भक्तिमार्गका लोप करना घोर अन्याय है । आपने " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्तृकर्म मीमांसा " के अनुसार ही " घट कारक मीमांसा " में भी एकान्त पक्षको ग्रहणकर व्यवहार धर्म का लोप करनेकी पूरी चेष्टा की है और सोनगढ के एकान्त वादकी पुष्टि करनेमें पूर्णतया प्रयत्न किया है अर्थात् व्यवहार निर्पेक्ष, केवल निश्चय सापेक्ष पट कारकों की सिद्धि की गई है इसलिये यह कथन एकान्तवादसे दूषित है क्योंकि जबतक निश्चय स्वरूप की प्राप्ति नहीं होती तबतक निश्चय स्वरूपकी प्राप्तिके लिये व्यवहार करना पडता है। " जहं ध्यान ध्याता ध्येयको विकल्प बच भेद न जहां | चिद्भाव कर्म चिदेश कर्ता चेतना क्रिया तहां ॥ For Private And Personal Use Only

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