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समोसा
विषय हैं ? ५-व्यवहारका लोप करना -निमित्तको अकिंचित कर ठहराना ३-क्रमबद्ध पर्याय की सिद्धि करना ४-उपादान की योग्यता से हो कार्य का सम्पादन होना वस इन्ही चार विषयों को घुमा फिराकर १२ अधिकारों में "जैनतत्त्वमीमांसा " की गई है । इसके अतिरिक्त और कुछ भी तत्त्व मीमांसा नही है ! जिसपर विचार किया जाय।
षट कारकों की प्रवृत्ति निमित्त और उपादानके आश्रयसे होती है दोनों में परस्पर निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है । यद्यपि मृत्तिका का घट परिणमनरूप व्यापार मृत्तिका में ही होरहा है और कुम्भकार का घट निर्माण रूप अनुकूल व्यापार अपने में हो रहा है दोनों का परिणमन स्वतंत्र है तथापि कुम्भकारादिक बिना मृत्तिका द्वारा स्वयमेव घटकी उत्पत्ति नहीं होती और न मृत्तिका विना कुम्भकार भी घटोत्पत्ति कर सकता है दोनोंका सम्बन्ध मिलनेले ही घटोत्पति हो सकती है अन्यथा नहीं इसलिये चटका व.र्ता कुम्भकार कहा जाता है कुम्भ कर्म है। चक्र और चीवर आदि करण हैं। जल धारण रूप प्रयोजन सम्प्रदान है कुम्भकारका अन्य व्यापार से निवृत्ति होना अपादान है और पृथ्वी आदि अधिकरण है। इस प्रकार षट कारक की प्रवृत्ति होती है यह असत्य नहीं है । यद्यपि सर्व ही पदार्थों का परिणमन स्वतंत्र है क्योंकि सब ही पदार्थ परिणमनशील है। इसलिये सवका परिणमन ग्वतंत्र रूपसे क्षण क्षण में होता ही रहता है । तथापि उस परिणमन में अन्य द्रव्य निमित्त कारण अवश्य पडते है। इससे यह नहीं समझना चाहिये कि अन्य द्रव्य के निमित्त विना उम का परिणमन स्वभाव ही नष्ट हो जाता हो किन्तु प्रत्येक पदार्थके परिणमनमें अन्य पदार्थ सहायक होते हो हैं विना सहायताकं किसी द्रव्यका स्वतंत्र पार मन नहीं
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