Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 354
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४६ जंन तत्त्व मोमांसा की कुन्दकुन्द स्वामी ने केवलज्ञानी आत्मा को ही रागद्वेष का कर्ता कहा है न कि अज्ञानी जीवको भी रागद्वेषका अकर्ता कहा हैं? यदि रागद्वेष का भी आत्मा कर्ता नहीं है तो क्या उसका कर्ता पुल जड़ पदार्थ है ? कदापि नहीं । जड़ पदार्थ भी रागद्वेष करने लग जाय तो उसके चेतना माननी पड़ेगी इस हालत में जड़ चेतन एक हो जावेगा । इसलिये रागद्वेष परिणाम का कर्ता सर्वथा आत्मा नहीं है ऐसा कहना सर्वथा आगम विरुद्ध है । कुन्दकुन्द स्वामी ने रागद्वेष का कर्ता आत्मा ही को घोषित किया है यह कथन हम ऊपर कर आये हैं तो भी यहां पर स्पष्ट करनेके लिये और भी उद्धृत कर देते हैं। देखो समयसार नाटक -- " शुद्ध भाव चेतन अशुद्ध भाव चेतन दुहुंकों करतार जीव और नही मानिये । कर्म पिंडको विलास वर्ग रस गंध फास करता दुहुँ पुद्गल पखानिये । तातें वरणादि गुण ज्ञानावरणादि कर्म नाना परकार पुद्गल रूप जानिये । समल विमल परिणाम जे जे चेतनके ते ते सव अलख पुरूष यों बखानिये" 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थात् अलख पुरुष कहिये भगवान ऐसा कहते हैं कि समल विमल परिणामों का कर्ता आत्मा ही है दूसरा कोई नही है इसका निषेध नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका उपादान आत्मा ही है पुल नहीं । पूर्वाचार्योंने निमित्तके बिना कार्योत्पति नहीं होती ऐसा घोषित किया है " विना निमित्ते न कुतो निवृत्तिः " ऐसा हम ऊपर बतला चुके जब निमित्त के विना कार्य सिद्ध नहीं होता विनमित्तको मुख्य करके कारण में कार्य का उपचार करके For Private And Personal Use Only

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