Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 349
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा ३४१ इत्यादिक जो वस्तु अनंती ईस निमित्त विन हुआ करे । वृथा निमित्त माना तुमने मिथ्या श्रेय सुधी न धरे ११ प्रभु जीवों पर वत्सल रखकर अथवा अनुग्रह चित' धरके इस कारण वह सृष्टी रचता ईस अवतार बन करके ॥ यह भी कारण है सव मिथ्या सुख सामग्री है कहुं नाहि दुःख मय वस्तु जगतमें ढ़ेरी अतः विश्वका करता नाहिं । १२ बुद्धिमान जो कर्ता हो सुख मय जगत बना देता। वाघ वघेरा रीछ रोझादिक दुष्टों को ना रच देता। असत्य वस्तु ना पैदा होती सतका कभी न होत विनाश । यह स्वभाव है अटल जगतका इसका कैसे होत विनाश १३ सत्तारूप से जो मौजूदा ईश्वर उसमें रचता क्या ? अथवा असत् की रचना करता खर विशाण बनाता क्या ? जैसे ग्राम नगर की रचना करे चतुर कारीगर है। तैसे सत् प्रमेय रचना में ईश्वर निपुण कारीगर है । १४ असत् कल्पना सुखदायक सुनारवत उसको समझो । सुनार ना सोनेका करता कुण्डलादि कर्ता समझो । तैसे वस्तु पलटने वाला है असंख्य स्वीकार करो। अतः विश्वका कर्ता नाहि सत्य पक्ष का मान करो ५५ मुक्त जीव को ईश्वर करते कृत्य कृत्य भी हो चुके । इस कारण वह वीतराग है विश्व वनानेमें किम दुके ? कर्मोदय क्या वाकी उनके तुम हम जैसा समझो ईश। तुम हम जैसा क्या कर सकता मिथ्यावादी नमावो शीश १६ जो पहले तो जगत वनावे पीछे उसका करे विनाश ऐसी दुष्ट बुद्धि क्यों होती फिर क्या नई लगाई आश या दुष्टोंको मारण हेतू ईश्वर प्रलय कराता है कैसा अच्छा न्याय ठहराकर मूखौंको समझाता है १७ For Private And Personal Use Only

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