Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 343
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा बुलावै ।। दुखी-दुःखहर्ता सुखी-सुक्खकर्ता । सदासेवकोको महानंदभर्ना ॥ हरे यक्ष राक्षस भृतं पिशाचं । विषं डाकनी विघ्नके भय अबाचं ।। दरिद्रीनको द्रव्यके दान दीने । अपुत्रीनको तू भले पुत्र कीने । महासंकटोंसे निकारै विधाता । सवै सम्पदा सर्वको देहि दाता ॥ महाचोरको वज्रको भय निवारे । महाशैन के पुजत तू उबारै ।। महाक्रोधकी अग्निको मेघधारा । महालोभ शैलेशको वज्र भारा ।। महामोह अन्धेरको ज्ञानभानं । महाकर्म कांतारको दौ प्रधानं ।। किये नाग नागिन अधोलोक स्वामी । हरौ मान तू दैत्यको हो अकामी ।। तुही कल्पवृक्ष तुही काम नं । तुही दिव्यचिंतामणी नाग एनं ।। पशू नर्कके दुःख से तू छुड़ावै । महास्वर्ग में मुक्तिमें तू बसावै ।। करै लोहको हेमपाषाण नामी । रट नाम सो क्यों न हो मोक्षगामी || कर सेव ताकी कर देव सेवा । सुने वैन सी ही लह ज्ञान-मेवा ।। जपै जाप ताको नहीं पाप लग । धरै ध्यान ताके सबै दोप भाजै बिना तोहि जाने धरे भव घनरे तुम्हारी पाने सरें काज मेरे।। इत्यादि शब्दोंमें भगवानको कर्ता कहा गया है ऐसा बोध होता है परन्तु वास्तवमें विचारकर देखाजाय तो काई भी स्तोत्रकारन भगवानको कर्ता घोषित नहीं किया है। किन्तु कारणमें कार्यका उपचार करके कहागया है । अर्थात भगवानके गुणानुवाद करने मे परिणामोंकी निर्मलता होजाती है । परिणामोंकी निर्मलतासे For Private And Personal Use Only

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