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समीक्षा
का कारण ही नहीं मिलता जैसाकि सती विधवा स्त्रीको पुरुषक: समागम नहीं मिलता अथवा अनेक कनकपाषाण जमीनमें ही पड़े रहते है उनको मलको दूर करनेवाले रजसोधा ( न्यारिया ) आदिका समागम ही नहीं मिलता । उसी प्रकार दूरामदूर भराजीवोंको गुरुदेशनादिका ममागम ही नहीं मिलता जो प्रात्माके साथ कर्ममल लगा हुआ है उस को दूर करनेका उपाय करें। ___इन उपरोक्त प्रमाणोंसे यह अच्छी तरह सिद्ध हो जाता है कि केवल उपादानकी योग्यतासे कोई भी कार्य नहीं होता विना निमित्तकारणके मिलाये । बिना निमित्तके योग्यता भी अयोग्यता रूप होकर एक तरफ पडी रहती है। जैसे कि दूरानदूर भव्य संसारबन्धन के छेदनेके कारणोंको प्राप्त न होनेसे अभव्यकी तरह संसार में ही भ्रमण करते हुये सदाकाल चक्र लगाते रहेगे। इस-- लियेो केवल अकेला उपादानकी योग्यता विना निमित्त के कार्योत्पन्न करनेमें समर्थ नहीं है। "भवंति दोषा न गणेऽन्यदीये संतिष्ठमानस्य ममत्ववीज गणाधिनाथस्य ममत्वहाने-विनानिमित्तेन कुतो निवृत्तिः ___ उपरोक्त कथनसे निमित्तकारणकी सार्थकता और विना निमितके उपादानकी योग्यताको अयोग्यता अच्छी तरह सिद्ध हो चुकी अर्थात् निमित्तकारण अकिंचित्कर नहीं है किन्तु उपादानकी योग्यताकी उपलब्धि में अनिवार्य कारण स्वरूप है । निमित्तके विना केवल उपादानकी योग्यतासे ही कार्य होता हो तो पंडितजी या कानजीस्वामो करके दिखावे या उपादानके द्वारा विना निमितके कोई कभी कार्य हुआ हो तो उदाहरण देकर बतलायें अन्यथा आगम विरुद्ध प्रचार करनेका परित्याग करें। __मिट्टीमें घट आदि बननेकी योग्यता है किन्तु निमित्त विना ( कुम्हार चाक चीवर दण्डादिके विना ) घट बनता हो तो घट वनाकर दिखलावें।
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