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न तत्व मामाता
Anamund
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न तत्त्व मीमांसा की अतद्गुणारोप नहीं जैसा कि ऊपर खुलासा किया जाचुका है।
आपने जो असद्भूतव्यवहार नयकी व्याख्या वृहद्रव्यप्रहको गाथाको टीकाका प्रमाण दिया है वह नयाभासोंकी मान्यताका है। इसका कारण यह है कि उसकी टीकाम टोकाकार स्परूपसे कहते हैं कि "मनोवच का व्यापार कियारहित शुद्ध निजात्मतत्त्वभावनासे शून्य ऐसा जो आत्मा वह ऐसा मानता है कि कर्मनोकर्म और वट पटादिका कर्ता जीव है। "मनोवचनकायव्यापारहित निजशुद्धात्मतत्वभावनाशून्यः मन्नुपचरितासद्भतव्यवहारण ज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मणां
आदिशब्देनौदारिकवेक्रयिकाहारकशरीरत्रयाहारादि षट्पर्याप्ति योग्यपुद्गल पिण्डरूपनाकर्मणां तथैवोपचरितासद्भ तव्यवहारण बहिर्विषयघटपटादीनां च कता भवति"
इसटीकामें ज्ञानावरणादि द्रव्यकमौका और औदारिकादि शरीररूपी नोकमांका एवं आहारादि षट्पर्याप्ति रूप नोकर्माका फर्ता मानना यह असद्भूत अनुपरित व्यवहारनयका विषय महागया है तथा घर मकान स्त्रीपुत्रादिकोका कर्ता मानना यह असद्भूत उपचरित व्यवहारनयका विषय कहा गया है इससे सह नहीं समझनाचाहिये कि यह सुनय असद्भूत अनुपचारत
और उपचरित व्यवहारनयका लक्षण है क्योंकि समीचीन नयका रक्षण तद्गुणारोपही कहागया है जो अतद्गुणागेप नय है वह अनय है ऐसा ऊपर अच्छीतरह सिद्ध किया जा चुका है । इसलिये यहां पर जो असदभूत अनुपचरित तथा अमद्भूत उपचरितनयकी मान्यताका उल्लेख किया गया है उसको प्रमाणांश यं नहीं समझना चाहिये । क्योंकि जो प्रमाणांश नय होगा वह स्तुस्वरूपके अंशको ही प्रहण करेगा। वह अपर वस्तु को स्ववस्तु
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