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समीक्षा
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सत्यार्थ हैं। तथा एक जीव द्रव्यहीका स्वभावकू लेकरि अनुभवन करते संत अमृतार्थ है असत्यार्थ हैं। जीवके एकाकार स्वरूपमें ये नाहीं है । ताते इनिका तचनिविष भूतार्थनयकरि जीव एक रूप ही प्रकाशमान है । तैसे ही अन्तर दृष्टिकरि देखिये तव ज्ञायकभाव तो जीव है तथा जीवके विकारका कारण अजीव है । अतः पुण्य पापासव संवर निर्जरा बन्ध मोक्ष हैं लक्षण जाका ऐसा केवल एकला जीवका विकार नाही है। पुण्य पाप आस्रव संवर निर्जरा वन्ध मोक्ष ये सात केवल एकला अजीवके विकार ते जीवके विकारकू कारण हैं । ऐसे ये नव तत्त्व हैं ते जीवद्रव्यका स्वभावकू छोडकरि आप अर पर है कारण जाकू एसा एक द्रव्यपर्यायपणाकरि अनुभवन करते संते तो भूतार्थ हैं।
तथा सर्व कालमें नाहीं चिगता एक जीव द्रव्यके स्वभावको लेकरि अनुभवन करते संते ये अभूतार्थ हैं असत्यार्थ हैं। ताते इनि नव तत्त्वनि विषे भूतार्थनयकार देखिये तव जीव है तो एक रूप ही प्रकाशमान है । जीवतत्त्व एक पणाकरि प्रगट प्रकाशमान हुआ संता शुद्ध नयपण करि अनुभवन कीजीये है सो यह अनुभवन है सो आत्मख्याति है आत्मा ही का प्रकाश है । अतः
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