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समीक्षा हो नहीं सकता क्योंकि वह नित्य है पर्यायका भी नहीं होता क्यों कि वह द्रव्यरूपसे,प्रौव्य है । यथा विवादास्पद मणि आदिमें मल
आदि पर्याय रूपसे नश्वर होकर भी द्रव्य रूपसे ध्रुव है अन्यथा उनकी सत्त्वरूपसे, उत्पत्ति नहीं होती ।
जैन तत्त्व मीमांसा पृष्ठ १६४, १६५ आप जो उपरोक्त प्रमाणोंसे यह सिद्ध करना चाहते हैं कि " ऐसी एक भी पर्याय नहीं जो द्रव्यरूपसे वस्तुमें और उत्पन्न होजाय भोर ऐसीभी कोई पर्याय नहीं है जिसका व्यय होनेपर द्रव्य रूपसे वस्तुमें उसका अस्तित्व ही न हो" १६४ इस कथनसे आपका अभिप्राय यह है कि जिन पर्यायों का व्यय हो चुका है उनका और आगे जो जो पर्यायें द्रव्यमें होने वाली हैं उन सव पर्यायों का अस्तित्व द्रव्यरूपसे वर्तमान वस्तु में मौजूद है। किन्तु आचार्योंके कहनेका यह अभिप्राय नहीं है कि भूत भविष्यत काल सम्बधी सर्व पर्यायों का अस्तित्व द्रव्यमें रहता है। उनके कहने का स्पष्टरूपसे अभिप्राय उक्त वाक्योंसे झलक रहा है कि _"तथाहि-विवादापन्न भण्यादौ मलादि पर्यायार्थतया नश्वरमपि द्रव्यार्थतया ध्रुवम्"
अर्थात मणि श्रादिमें मलादि पर्याय का नाश होनेपर भी द्रव्यरूपसे वह ध्रुव है । सारांश यह है कि पर्यायका नाश होनेपर भी पर्यायके साथ द्रव्यका नाश नहीं होता क्योंकि द्रव्य नित्य है " न तावद् द्रव्यस्य नित्यत्वात " इन शब्दोंसे द्रव्यका कभी नाश नहीं होता । विभाव पर्यायका प्रध्वंसाभावसे अभाव होता है जैसे मणिमें मलका अभाव होता है किन्तु उस मलका द्रव्यरूपसे नाश नहीं होता इस लिये उसका मलरूप पर्यायका अभाव होकर दूसरी पर्यायरूप उसका परिणमन हो जाता है
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