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समीक्षा
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नाहीं तो भी युक्त शब्द देखिये हैं । तैसे उत्पाद व्यय प्रौव्य इन तीनोंका अविनाभावले सत्का लक्षण वणे है । अथवा युक्त शब्द का समाहित भी अर्थ होता है । युक्त कहिये समाहित तादात्मक तत्म्वरूप ऐमा भी अर्थ है ! तातें उत्पाद व्यय ध्रौव्य स्वरूप सत् है ऐसा अर्थ निर्दोष है । तातें यहां ऐसा सिद्ध होय हैजो उत्पाद आदि तीनों तो द्रव्यके लक्षण हैं अरु द्रव्य लक्ष्य है नहां पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा करि तो तीनू ही द्रव्यते तथा परस्पर अन्य अन्य पदार्थ हैं । बहुरि द्रव्याथिक नयकी अपेक्षा करि जुड़े नाही दिखें है । तातें द्रव्यतें तथा परस्पर एक ही पदर्थ है । ऐसे भेदाभेद नयकी अपेक्षा कार लक्ष्य लक्षण भावकी सिद्धि होय है। ___ इहां कोई कहै कि-जो ध्रौव्य तो द्रव्यका लक्षण और उत्पाद व्यय पर्यायका लक्षण ऐसे कहना था यामें विरोध न आवता त्रयात्मक लक्षण कहनेमें विरोध आवे है । ताका समाधान जो ऐसे कहना अयुक्त है जातें सत्ता तो एक है सो ही द्रव्य है। ताके अनन्तपर्याय हैं । द्रब्य पर्यायकी न्यारी न्यारी दोय सत्ता नाहीं है । बहुरि एकान्तकरि ध्रौव्य ही को सत् कहिये तो उत्पाद व्यय रूप प्रत्यक्ष व्यवहारके असत्पना आवे तब सर्व व्यवहार का लोप होय । तथा उत्पाद व्ययरूप ही हान्तकरि सत् कहिये लो पूर्वापरका जोडरूप नित्यभाव विना भी सर्व व्यवहार का लोप होय तातें त्रयात्मक सत हो प्रमाणसिद्ध है ऐसा ही वस्तु स्वभाव है सो कहनेमें आवे है। यह सर्वार्थसिद्धिकारका वचन है
इन वचनोंके अनुसार ही समन्तभद्राचार्यके और विद्यानन्दि आचार्यके वचन हैं जो आपने अपने ध्येयकी सिद्धि करने के हंतु प्रमाण में दिये है, किन्तु उक्त प्रमाणोंसे क्रमनियमित पर्याय की सिद्धि नहीं होती । क्योंकि सत् है सो वह उत्पाद और
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