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समीक्षा .mmm.mir...wwwwwwwwwwwwwwwwww.wwwma...... भी है इस कारण उसका उत्पाद ब्यय होता रहता है इसी कारण वह व्यतिरेकी है अन्वयी नहीं हैं अतः अन्वयी नहीं होने पर भी उत्पाद व्ययको अन्वयी कहा है वह द्रव्यार्थिकनय अपेक्षासे कहा है क्योंकि वह द्रव्यमें ही होता है उससे कोई उत्पाद ब्यय अलग पदार्थ नहीं है। किन्तु पर्यायार्थिक नयकरि उत्पाद व्यय
और प्रौव्य यह तीनों ही अन्य अन्य पदार्थ है इसकारण पर्यायार्थिक नयार सर्व पर्याय व्यतिरेकी ही हैं। अन्वयी नहीं हैं। इस लिये पर्यायोंको अन्वयी मानकर ‘क्रमनियमित ' मानना सर्वथा आगम विरुद्ध है।
छहों द्रव्य और उनके गुणोंकी संख्या नियत है इसका कारण राह है कि वे सब द्रव्य अन्वयी हैं उनका द्रब्यके साथ तादात्मक सम्बन्ध है इसी लिये उनमें हानि वृद्धि नहीं होती किन्तु द्रब्यकी पर्याय ब्यतिरेकी हैं इसकारण उनकी संख्या नियत नहीं होसकती क्योंकि अनादि कालसे लेकर अनन्तकाल तक द्रव्यका सद्भाव रहैगा ही द्रव्य के सद्भावमें उनका परिणमन रूप पर्याय नवी नवी उत्पन्न होती ही रहेंगी क्योंकि उनका उत्पाद ब्यय रूप परिणमन स्वभाव है स्वभावका कभी अभाव होता नहीं इसकारण द्रब्य की पर्याय नियमित नियत नहीं हो सकती अत: द्रव्य अपेक्षा भी पर्यायोंको क्रमनियमित मानना आगम और युक्तियों से भी सर्वथा विरुद्ध है।
क्षेत्र अपेक्षा भी क्रमनियमित या सम्यकनियति पर्यायों की सिद्धि नहीं होती । क्योंकि तीन लोककी जो रचना है वह अकृत्रिम है यदि अकृत्रिम रचनामें कृत्रिम रचना की तरह हेर फेर होने लगे तो छहों द्रब्यों में भी फेर फार होकर लोक की व्यवस्थाका हो अभाव होजाता इसलिये अकृत्रिम ऊर्ध्वलोकमें सोलह कल्प नौ प्रैवेयक नौ अनुदिश और पांच अनुत्तर विमान और
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