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समीक्षा
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हो अर्थात यह faar faमित्त कारण के ही होता रहता है। उत्स पिंणी के तृतीय काल में और अवसर्पिणी के चतुर्थकाल में चौबीस तीर्थकर वारह चक्रवर्ती नौ नारायण नौ प्रतिनारायण, नौ बलभद्र ग्यारे रुद्र और चौवीस कामदेवका उत्पन्न होना निश्चित है ये निमित्तानुसार पद प्राप्त कभी कम जादा नहीं होते ।
आयुका बन्ध भी आठ अपकर्षरण कालमें ही क्यों होता है ? या मरणके अन्तर मुहूर्त पूर्व ही क्यों होता है ? तथा छह महीना आठ समय में छहसौ आठ जीव ही मोक्ष क्यों जाते हैं ? अधिक या कम क्यों नहीं जाते ? इत्यादि कहनेका सारांश यह है कि परिणामोंकी सबके नियतता है इसी कारण तीथङ्करादि पद कम जादा नहीं होते और छह महीना आठ समय में छह सौ आठ जीवोंके ही मोक्ष प्राप्ति रूप परिणाम होते हैं तथा आयुबन्धके परिणाम आयुके आठ अपकर्षण काल में ही होते हैं या मरणसमय के अन्तर्मुहूर्त पहिले ही होते हैं। इस कारण सबके परिग्राम नियमरूपसे है । परिमित हैं । इसीलिये जिसकाल में जिसके जैसा परिणाम होना है वैसा ही होता है इसी कारण सव निय मित कार्य होते है । "
किन्तु कालगत यह मान्यता भी मिथ्या है। क्योंकि एक नियमित कार्य होनेसे सब ही नियमित कार्य हो ऐसी कोई व्याप्ती नहीं है। अवसर्पिणीके चौथे कालमें और उत्सर्पिणी के तीसरे कालमें तीर्थङ्करादि जो नियमित रूपसे होते तो सव द्रव्योंकी पर्यायें भी नियमित रूपसे होनी चाहिये यह कोई नियम की बात नहीं है । जो नियमित रूपसे जिस कालमें जो होता है उस में भी काल दोषसे कम जादा और आगे पीछे होता देखिये हैं। जैसे इस हुण्डावसर्पिणी कलमें आदिनाथ भगवानने तीसरे कालमें ही मोक्ष पदकी प्राप्ति करली तथा बाहुवलस्वामी आदि
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