Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 322
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन तत्त्व मीमांसा की नाथ भगवानके पहिले ही मोक्ष में जा पहुंचे और भरतचक्रीका मानभंग हुआ छोटे भाईसे युद्ध में हार खाई तथा आदिन'श भगवानके दो कन्या उत्पन्न हुई यह कार्य अनियमित हुआ । नियम तो यह हैं कि अवसर्पिणीके चौथे काल में ही तीर्थङ्कर मोक्ष जाते है और उनके पहिले कोई भी मोक्ष नही जाते तथा चक्रवर्ती किसीके सामने हार नही खाते और तीर्थङ्करोंके कन्या उत्पन्न नहीं होती अतः इस नियम का भी कालके निमित्तसे भग हुआ। इसके अतिरिक्त रुद्रोंकी उत्पत्ति किसी कालमें नहीं होती सो भी इसीकालमें हुई । तथा जो पदवीधारी पुरुष होते हैं वे वि अलग अलग ही होते हैं एक पुरुष दोय तीन पदवीयों को प्राप्त नहीं होते ऐसा नियम है किन्तु इस काल के प्रभावसे एक एक पुरुषने दोय दोय तीन २ पदवीयां धारण करली था जैसे शान्ति कुथु अर्हनाथ भगवान तीर्थकर चक्रवर्ती और कामदेव भी हुये । इसप्रकार महावीर म्वाभीके जीवने नारायण पद प्राप्त कर तीर्थकर पद भी प्राप्त किया। ये सव अनियमित कार्य इस कालके प्रभावसे हुआ । केई नारायण प्रतिनारायण तीसरे नरक गये तो केई चौथे नरक भी गये । आठ वलभद्र मोक्ष गये एक वलभद्र स्वर्गमें ही गये । ग्यारे चक्रवर्ती मोक्ष गये एक नर्क गया ऐसा क्यों हुश्रा आपकी मान्यताके अनुसार सबका एकसा नियम रहना था । इसलिये यह मानना पडेगा कि जो नियमित कार्य हैं वे भी निमित्ताधीन उलट पलट होजाते हैं तो जो द्रव्यकी पर्याय सदा उलट पलट होती रहती है उनको नियमित कार्योंके समान नियमित रूपसे नियत वतलाना सर्वथा मिथ्या है तार्थकरोंकी जन्म अयोध्या नगरीमें ही होनेका नियम है और श्रीसम्मेदशिखरजी से ही मोक्ष जानेका नियम है किन्तु इस हुंडावसर्पिणी कालमें हेरफेर होगया । छह For Private And Personal Use Only

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