Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 323
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा ३१५ महिने आठ समयमें कमसे कम छहसौ आठ जीव मोक्ष जानेका जो नियम है उसमें भी एक महीने में एकसौ और आठ समयमें आठजीव न जाकर कभी कभी छह महीने तक एक भी जीव मोक्ष नहीं जाते है शेष आठ समयमें ही छहसौराठ जीव मोक्ष चले. जाते हैं । यह नियतपणाका क्रम भंग किसलिये हुआ ? तो मानना पडेगा कि उसरूप निमित्त नहीं मिला । इस कारणसे छह महिने तक कोई जीव मोक्ष नहीं गये । ___कर्मभूमियां मनुष्य और तियचों का आयु वन्ध भुज्यमान कायुके आठ अपकर्षणों में होता है ऐसा क्यों ? एक ही अपकर्षणम क्यों नहीं होता ? तो यही कहना पड़ेगा कि उस समय आयु वन्ध होने योग्य परिणाम नहीं हुये तो क्रमवद्धता परिणामोंकी कहाँ रही । आठ अपकर्षणों में भी आयु वन्धके योग्य परिणाम अनेक जीवोंके नहीं होते हैं और किन्ही किन्ही के पहिले अपकर्षणमें भी आयुका वन्ध होने योग्य परिणाम होजाते हैं तो किसी के दूसरे तीसरे चौथे पांचवे छठे और सातवें अपकर्षणमें आयुव-धके योग्य परिणाम होते हैं और किसोके मरणसमयसे कुछ पूर्वमें नवीन पायुका वन्ध होता है ऐसा अनियम क्यों ? सवका समान नियम होना चाहिये : तो यही कहना पडेगा कि सवको नवीन आयुवधके योग्य निमित्त नहीं मिला इसकारण उस रूप सबके परिणाम नहीं हुये, आयुवन्ध होने योग्य जिसको जैसा निमित्त मिला उसका उस रूप परिणाम होकर उसके अनुसार उस रूप देवादि आयुका बन्ध हुआ। परिणामोंकी गति निमित्तानुसार परिवर्तन होती रहती है इसी कारण सको त्रिभागी में अंतर रहता है एकरूप त्रिभागी किसीकी भी नहीं पडती तथा सब जीवोंकी आयु वन्ध होनेका एकरूप नियम भी नहीं है । देव नारकीके जीवोंकी आयु न्ब श्रायुके छह मास बाकी रहनेपर आठ त्रिभागी होती हैं For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376