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जैन तत्त्व मामांसा की -~~ .www.xnxx.mmmmmmmmm वृद्धिको प्राप्त होती है । जो व्यक्ति पुरुषार्थ हीन है स्वकालके भरोसे पर मुह बाहै बैठा है जिसके खानपानकी शुद्धिका तथा भक्षाभक्ष का विचार नहीं, उसके पास वीतरागता कैसी ? भेद विज्ञानसे बीतरागता आती है और भेद विज्ञानवाला विषयाशक्त हो यह वात वनती नही। प्राचार्य कहते हैं कि"ज्ञानकला जिसके घट जागी,ते जगमाहिं सहज वेरागी। ज्ञानी मगन विषय सुख मांही,यह निपरीत संभवे नाही"
"ज्ञानशक्ति वैराग्य वल, शिव साधे समकाल । ज्यों लोचन न्यारे रहैं, निरखे दोऊ ताल" ४२
- समयसार नाटक निर्जराद्वार इस कथनसे भेदविज्ञानी जीव स्वकाल पर निर्भर नहीं करता वह तो विषयसुखोंसे विमुख होकर शिव साधनमें लग जाता है । आचार्यकहते हैं कि ज्ञानी होकर विषय सुखमें राचे यह विपरीत बात है । क्योंकि ज्ञानी अज्ञानीमें इतना ही तो अंतर है जो कि ज्ञानी विषयसुखसे विरक्त है और अज्ञानी विषय सुख में तल्लीन है । अतः जहां विषयसुख में तल्लीनता है वहां वीतरागता कहां ? वीतरागता तो राग मिटे होय विषय बांच्छा मिटे विना वीतरागताका गीत गाना अपरमार्थभूत है, वहांपर वीतरागता का सद्भाव लेशमात्र भी नही है। • क्रमवद्ध पर्यायमें आप एक यह हेतु देते हैं कि "उदाहरणस्वर, रूप प्रथमानुयोगको ही लेलीजीये। उसमें महापुरुषोंकी अतीत जीवन घटनाओं के समान भविष्य सम्बन्धी जीवनघटनायें भी अंकित की गई हैं।"
जैनतत्त्वमीमांसा पृष्ठ ७६
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