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समीक्षा तो पदार्थकी भी सिद्धि नहीं होती अत: पदार्थोंमें स्वभावकी हानि वृद्धि नहीं होती इसकारण पदार्थोकी संख्या नियत है । और पर्यायोंका क्रम उत्पाद व्यय स्वरूप है इस कारण उनकी संख्या नियत नहीं है अतः उसको नियमित नियत मानना सर्वथा आगम विरुद्ध है । इसी कारण प्राचार्योने क्रमबद्ध पर्याय (क्रमनियमितपर्याय ) को मानने वालों को नियतिवाद पाखंडी वतलाया है। यदि मिथ्या नियतिवादकी तरह सम्यनियति भी कोई वस्तु होती तो प्राचार्य उसका भी सम्यनियति बोलकर उल्लख अवश्य करते जैसे सम्यकदर्शन और मिथ्यादर्शनका उल्लेख किया है । इसलिये मानना पडता है कि सम्यनिर्यातका आगममें कहीं पर भी उल्लेख नहीं है क्योंकि सम्यनियति कोई पदार्थ ही नहीं है । और न कोई क्रमनियमित सम्यकपर्याय है जो उसका आगममें उल्लेख मिलता । आगममें तो एकही उल्लेख मिलता है कि क्रमवद्धपर्याय ( क्रमनियमित पर्याय ) को माननेवाला नियतिवाद है । क्रमवद्ध पर्यायको मानने वालोंको श्राचार्यो ने. नियतिवादी क्यों कहा इसका कारण क्या है ? इस पर विचार करनेसे यही ज्ञात होता है कि क्रमवद्ध पर्याय पर निर्भर करनेवाला दोनों तरफसे मिथ्यादृष्टि होता है । अर्थात् भगवानके ज्ञानमें हमारा परिणमन किस समय कैसा होगा वैसा झलका है वह उसीके माफक होगा उसमें न्यूनाधिक नहीं होगा इस ज्ञायकपक्ष पर निर्भर करने वालोंकी दशा मारीचकी और द्वीपायनमुनि आदिकी सी होती है । जो अपने कल्याणकी वात जान लेता है वह भी मारीचकी तरह स्वछंद होकर मिथ्यादृष्टि वन जाता है और अनंतकाल तक संसारमें परिभ्रमण करता है । तथा जो अपने अकल्याणकी वात जान लेता है वह भो द्वीपायनमुनि और यादवोंकी तरह डरके मारे उमसे वचनेका उपाय करनेके लिये प्रयत्न करते हैं इस कारण वे भी मिथ्यादृष्टि बनकर अनन्त संसारमें परिभ्रमण करते
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