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समीक्षा
३.६
वद्ध पर्यायका समर्थन होता है या नहीं । तथा आपके दिये गये उदाहरणोंका क्रमनियमित पर्याय के साथ मेल खाता है या नहीं अथवा पंडितजी का उपरोक्त कथन यथार्थ है या नहीं इत्यादि विषयोंकी आलोचना करके सत्य असत्य का निर्णय करना है। __पंडितजीने द्रव्य क्षेत्र काल और भावोंकी अपेक्षासे उपरोक्त पदार्थोकी अवस्था निश्चितरूपसे स्वसिद्ध है उसमें किसी निमित से फेर फार नहीं होता ऐसा सिद्ध करनेकी चेष्टाकी हैं । किन्तु पंडितजी ने प्रथम गलती तो यह की है कि आपने व्यवहारका लोपकर परमार्थकी सिद्धि करनेवाले होकर भी व्यवहारका आश्रय लिया है। अर्थात् द्रव्य क्षेत्र काल और भाव स्वरूपसे प्रत्येक पदार्थ विद्यमान है इसलिये उसके सहारेसे पडितजीको कथन करना उचित था किन्तु पंडितजीने स्वचतुष्टयके आश्रय पदार्थ का विवेचन न करके व्यवहार क्षेत्र, काल, भावकी अपेक्षा से कथन किया है । पदार्थका स्वद्रव्य तो पदार्थका संपूर्ण अवयवोंका समुदाय है तथा पदार्थका स्वक्षेत्र पदार्थके प्रदेशमात्र, पदार्थका स्त्र काल पदार्थका परिणमन है और पदार्थका स्वभाव
औपशमिकादि पंच प्रकारके भाव हैं । ( औपशमिक, क्षायिक, चायोपशमिक औदयिक, पारिणामिक ) इनके आश्रयसे कथन किया होता तो वह नियत दृष्टिसे समझा जाता । किन्तु आपने ऐसा न कर व्यवहार दृष्टिसे जो पर चतुष्टय रूप तीन लोकके क्षेत्र हैं तथा काल जो तीन लोकमें व्यवहार कालके आश्रय की व्यवस्था है तथा भाव जो कषाय लेश्यादि औदायिक परिणाम है। - उनके आश्रयसे कथन किया है । यह आपकी मान्यतामें दूषण है। क्योंकि आप निश्चयावलम्बी हैं अतः आपको तो व्यवहार का
और निमित्तोंका लोप करना ही उचित था। खेर-"अर्थी दोपन्न पश्यति" छहों द्रव्य नित्य हैं अकृत्रिम हैं और उनमें रहनेवाले
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