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जैन तत्त्व मीमामा की
नने जैसा देखा है वैसा हमारा परिणमन होगा यह वात सर्वथा श्रागमविरुद्ध है । हमारा परिणमन हमारे आधीन है उनका ज्ञान उनके आधीन है । उनके ज्ञानकी इतनी ग्वच्छता है जो अनन्तानन्त पदार्थोंका त्रिकालीन परिणमन उनके ज्ञानमें झलक जाता है इसकारण वे यह कह देते हैं कि उस समय उसका ऐसा परिणमन होने वाला है। इससे यह भी नहीं समझना चाहिये कि प्रत्येक पदार्थ. साथ त्रिकालीन सर्ग पर्यायें विद्यमान कित रहती हैं इसीलिये वे जानते हैं अतः श्रांकित रहनेकी वात सोया मिथ्या है उत्पाद व्यय और ध्रौव्य यह सत् पदार्थका लक्षण है इस कारणसतपदार्थ में समय समय प्रति उत्पाद व्यय होता ही रहता है। उत्पाद व्ययका अर्थ ही यह होता है कि असत् पर्यायकी उत्पत्ति
और सत् पर्यायका नाश । इसके अतिरिक्त विद्यमान पर्यायको उत्पत्ति और विद्यमान पर्याय रहते उसका नाश माननेसे सत् पदार्थका उत्पाद व्यय और ध्रौव्य यह लक्षण ही नहीं बनता इस. लिये द्रव्य के साथ भूत भविष्यत् कालीन सर्वा पर्याय किन रहती हैं ऐसा मानना जैनागमसे सर्वाथा विरुद्ध है।
इसका खास कारण यह भी है कि-जो जीवकी भूत भविष्यत् वर्तमान सम्बन्धी सो पर्यायें जीवके साथ कित मानली जांयगी तो वह परिमित होगी,जैसे एक पुस्तकके पेज वे सब पुस्त कमें परिमित अंकित रहते है तैसे जीवके साथ सर्वांपर्याय अंकित होंगी तो वह भी पुस्तकके पेजोंके समान परिमित ही होगी । जैसे पुस्तकके पेज पलटनेसे एकका व्यय और दूसरेका उत्पाद पुस्तकमें ही अंकित रहता है किन्तु पुस्तकका उत्पाद व्यय । तब तक ही रहता है जब तक कि सर्व पेज एक एक कर न . पलट दिये जाय, जव सव पेज पलट दिये जाते हैं तब उसमें उत्पाद व्ययका स्वरूप खतम हो जाता है, पुस्तक कूटस्यरूपमें
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