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समीक्षा
फेले हैं ताकरि मार्गका प्रकाशन होय ही है । तेसे ही केवली वीतराग है ताते ताक ऐसी इच्छा नाही जो हम मोक्षमार्ग प्रगट करें परन्तु महजही अधाति कनिका उदय कार तिनिका शरीररूप पुद्गल दिव्यध्वनि रूप परिणमै है ताकरि मोक्षमार्गका प्रकाशन हो है । बहुरि गणधर देवनिके यह विचार प्राया जहां केवली सूर्यका अस्तपना होय तहां जीव मोक्षमार्गको कैसे पावे अर मोक्षमार्ग पाये विना जीव दुःख महेंगे ऐ । करुणा बुद्धिकरि अंग प्रकीर्णकादि रूप ग्रंथ तेही भये महान दीपक तिनिका उद्योन किया "
मोक्षमार्ग प्र०२६ इस कथनसे निमित्तकी सार्थकता अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है जिसप्रकार सूर्यके उदय विना अन्धकारका अभाव हाता नही तथा मार्गका प्रकाशन भी होता नाहीं उसी प्रकार केवली भगवान रूपी सूर्यके उदय विना मोक्षमार्गका प्रकाशन होता नाहीं तथा मिथ्या अन्धकार दूर होता नाहीं। इसके विपरीत कानजो जो यह कहते हैं कि "सूर्यका उदय हुआ इसलिये धूप होगई (प्रकाश होगया) यह बात मिथ्या है "
जो वात प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है कि सूर्यके उदयमें या दापक के उजालेमें प्रकाश होता है उसका निषेध करना इसस चढकर और गहलपना क्या होगा ? कानजी भी निमित्तको अकिचित्त कर मानते है उसी तरह आप भी निमित्तको अकिंचित्कर मानते हैं । कानजी भी योग्यताका हिढोरा पीटते हैं आप भी याग्वताका ही वो वाला सिद्ध करते है । कानजी क्रमवद्ध पर्याय होना मानते हैं आप भी क्रमनियमित पर्याय मानते हैं
आपकी मान्यतामें और कानजीकी मान्यतामें रंचमात्रका फरक नहीं है फरक केवल शब्दोंका है । वे सीधे शब्दोम कहते है
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