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जैन तत्व मीमासा की
समाधान अपनेसे न बने वेसी शंकाको उपस्थित करना विद्वानों का काम नहीं है। __ शंका तो थी प्रेरक निमित्त के सम्बन्ध कि प्रेरकनिमित्त द्वाग जो आम १५ दिन बाद पकनेवाला था उग्ने प्रयत्न द्वारा चार दिन में ही पका सकते हैं। अथवा जो आटा ४ दिन में नष्ट होने वाला है ( चलितरस होने वाला है ) उसे हम पौडर आदि के प्रयोगद्वारा चार माह नष्ट नहीं होने देते हैं इसलिये प्रेरक निमित्त द्वारा कार्य की सिद्धिोत है इसके मान से किम प्रकार की हानि नहीं है । अतः इस आशय के प्रश्न का उत्तर आपको प्रेरक निमित्त के निषेध में उदाहरण पूर्वक देना था जैसी शंका उदाहरणपूर्वक की गई है वैसा समाधान उदाहरणपूर्वक करना था जिससे मयंक गले उतर जाता परन्तु सत्य वात असत्य कैसे की जाय ! नहीं की जासकती इसाकारण प्रश्नका उत्तर न बननसे आपने असली वातको छिपाकर असंबद्ध उत्तर देदिया, इम ढंगसे कि साधारण लोग न समझ सकें कि उत्तर ठीक बना या नहीं।
एक द्रव्य अन्य द्रव्य रूप नहीं परिणामन करता अथवा एक द्रव्यका गुण अन्य द्रव्यके गुणरूप परिणमन नहीं कर सकता यह तो द्रव्यगत स्वभावकी वात है इसके माथ तो प्रेरकनिमित्तका सवाल ही नहीं उठता। तथा स्वद्रव्यमें एक गुण अन्य गुणरूप परिणमन नहीं करता यह भी द्रव्यगत स्वभाव है तथा अगुरुलघु नामका एक गुण है वह सब द्रव्योंमें पाया जाता है उस गुणका कार्य सव द्रव्य के मव गुणोंकी मीमा वांध रखना है किसी द्रव्य या गुणको अपनी मीमाको उलंघन नहीं करने देशा इसकारण सव द्रव्य और सब द्रव्योंके गुण ये मब अपने अपने स्वरूप में राहा आश्रित रहने हैं अपने पसे बेकार नहीं होते इसलिगे इसके साथ प्रेरक निमित्तका सम्बन्ध ही क्या है !
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