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समीक्षा
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को जान लेता है वह परको कर्तृत्ववुद्धिका त्याग कर पुरुषार्थद्वारा स्वभाव सन्मुख हो मोक्षका पात्र हो जाता है और जो इसका विपर्याम करता है वह प्रमादो बनकर संसारका पात्र हो जाता है " क्योंकि " तीर्थंकरों और ज्ञानी सन्तोंका यही उपदेश है।" ___ वास्तवमें पंडितजी सिद्धान्त शास्त्री हैं इसलिये सिद्धान्तके रहस्य को श्राप अन्छी तरहसे समझ चुके हैं। इसके अतिरिक्त का नजो स्वामी जैसे सन्तपुरुषोंका समागम यह सोनेमें सुगन्धवाली कहावत चरितार्थ हुई । उक्त सिद्धान्तके छिपे हुये रहस्यको समझनेवाले आप और कानजी स्वामी ही मोक्षको जानेके पात्र हैं और सब आपके समझे हुये रहस्यका विरोध करनेवाले संसारके ही पात्र हैं। इसमें कोई संदेह की बात नहीं है क्योंकि उन सककी श्रद्धा पुरानी है इसलिये आपकी नवीन श्रद्धाका विरोध करते हैं इस कारण वे संसार में ही परिभ्रमण करेंगे। और आप समीचीन श्रद्धासे अवश्यही मोक्ष जांयगे यही बात है ना। पंडितजी ! यह बात तो हमारे समझमें आगई पर एक बात समझ में न आई वह यह है कि जव मोक्ष जाना सवका सुनिश्चित समय है तव वह कदाचित् अपने स्वकाल में आपसे भी पहिले मोक्ष जा सकते हैं । आपसे भी पहिले मोक्ष जानेका स्वकाल उनका आसकता है फिर आपका जो यह कहना है कि " इस सिद्धान्तके छिप हुये रहस्य को समझनेवाले ही मोक्ष जांयगे और जो इस सिद्धान्तके छिपे हुये रहस्यको नहीं समझते हैं नहीं जानते हैं वे संसारमें ही परिभ्रमण करेंगे सो सव स्वतः मिथ्या सिद्ध होजाता है । अतः श्रापकी मान्यताके रहस्यको समझनेवाले और न समझनेवाले दोनू हो अपने अपने स्वकालमें तो मोक्ष जावेंगे ही फिर आपकी समीचीन मान्यताको क्या कीमत रही। आपकी मान्यतानुसार जो जैनधर्म से वहिर्मुख है वह भी अपने अपने
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