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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा २६६ को जान लेता है वह परको कर्तृत्ववुद्धिका त्याग कर पुरुषार्थद्वारा स्वभाव सन्मुख हो मोक्षका पात्र हो जाता है और जो इसका विपर्याम करता है वह प्रमादो बनकर संसारका पात्र हो जाता है " क्योंकि " तीर्थंकरों और ज्ञानी सन्तोंका यही उपदेश है।" ___ वास्तवमें पंडितजी सिद्धान्त शास्त्री हैं इसलिये सिद्धान्तके रहस्य को श्राप अन्छी तरहसे समझ चुके हैं। इसके अतिरिक्त का नजो स्वामी जैसे सन्तपुरुषोंका समागम यह सोनेमें सुगन्धवाली कहावत चरितार्थ हुई । उक्त सिद्धान्तके छिपे हुये रहस्यको समझनेवाले आप और कानजी स्वामी ही मोक्षको जानेके पात्र हैं और सब आपके समझे हुये रहस्यका विरोध करनेवाले संसारके ही पात्र हैं। इसमें कोई संदेह की बात नहीं है क्योंकि उन सककी श्रद्धा पुरानी है इसलिये आपकी नवीन श्रद्धाका विरोध करते हैं इस कारण वे संसार में ही परिभ्रमण करेंगे। और आप समीचीन श्रद्धासे अवश्यही मोक्ष जांयगे यही बात है ना। पंडितजी ! यह बात तो हमारे समझमें आगई पर एक बात समझ में न आई वह यह है कि जव मोक्ष जाना सवका सुनिश्चित समय है तव वह कदाचित् अपने स्वकाल में आपसे भी पहिले मोक्ष जा सकते हैं । आपसे भी पहिले मोक्ष जानेका स्वकाल उनका आसकता है फिर आपका जो यह कहना है कि " इस सिद्धान्तके छिप हुये रहस्य को समझनेवाले ही मोक्ष जांयगे और जो इस सिद्धान्तके छिपे हुये रहस्यको नहीं समझते हैं नहीं जानते हैं वे संसारमें ही परिभ्रमण करेंगे सो सव स्वतः मिथ्या सिद्ध होजाता है । अतः श्रापकी मान्यताके रहस्यको समझनेवाले और न समझनेवाले दोनू हो अपने अपने स्वकालमें तो मोक्ष जावेंगे ही फिर आपकी समीचीन मान्यताको क्या कीमत रही। आपकी मान्यतानुसार जो जैनधर्म से वहिर्मुख है वह भी अपने अपने For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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