________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जैन तत्त्वमीमांसा की
कारण है कि मोक्षके इच्छुक पुरुषों की अनादिरूढ लोकव्यवहारसे मुक्त होकर अपने द्रव्यस्वभावको लक्षमें लेना चाहिये ऐसा उपदेश दिया जाता है" ___पंडितजी ! आप जैसा कहते हैं वैसा उपदेश आचार्योंने तो नहीं दिया है आपकी और कानजीस्वामीको ऐसी मान्यता है उसमें आपको और उनको संदेः हो ही कैसे सकता है ? आपको
और कानजीस्वामीका संदेह है तो आचायवचनोंमें है। इसलिये उनको झूठा तो लोक यसे कह नहीं सकते पर प्रकारान्तरसे उनको झूठा सिद्ध करने में और अपनी मान्यता सत्य सिद्ध करनेमें किसी प्रकार को श्राप लोगोंने कमी नहीं रखी । जो हो, आप लोगोंके प्रयत्नसे आचार्यवचन कभी मिथ्या नहीं होसकते क्योंकि प्राचार्योंके वचन केवली भगवानके ही वचन हैं प्राचार्य अपनी तरफसे कुछ नहीं कहते । वे तो केवली भगवानके वचनोंका ही प्रतिपादन करते हैं इसलिये उनके वचन मिथ्या नहीं होसकते । ___ उपादानकी योग्यता भी विना निमित्त के प्रगट नहीं होती मिट्टी में घट उत्पन्न करने की योग्यता शक्ति रूपसेविद्यमान रहने पर भी खानसे मिट्टी निकाल कर चाकके सामने रख देनेसे वह मिट्री घटरूप परिणमन नहीं करती ! उसमट्टी में बटरूप परिणमन करने की योग्यता स्वमेव प्राप्त नहीं होती । कुभकार के द्वारा उम मिट्टी में पानी देनेसे उसको गूदनेसे पीटने से उस मिट्टीमें घदरूप परिरणमन करने की योग्यता जो शक्तिरूप विद्यमान थी वह व्यक्त रूप प्रगट होती है अन्यथा नहीं । फिर भी वह मिट्टी अपना योग्यतासे स्वमेव घटादिरूप परिणमन नहीं करसकता । उसको कुभकार अपनी इच्छाअनुसार घटरूप परातरूप हांडीरूप दीपकरूप शिकोरा रूप परिणमाता है वह उसरूप परिणमन करती है । यह प्रत्यक्ष है इसीवातकी पुष्टिमें आचार्य अमृत चन्द्र कलश रूप काव्य कहते है ।
For Private And Personal Use Only