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समीक्षा
निमित्तका हो बोलवाला रहा । अथवा निमित्त जव स्वयं उपादानको इस्तावलम्वन देकर शिवलोकमें पहुंचा देता है तब उसकी हार कैसी ? वह तो परोपकारी रहा । उपादानको शिवपुर पहुंचा कर सदाके लिये सुरखी बना देता है। निमित्तका आखरी दोहा
"सम्यग्दशन भये कहा त्वरित मुक्तिमें जाहिं । आगे ध्यान निमित्त है वह मोक्ष पहंचाहि" ३६
ग्रह यात सत्य है पानके विना मोक्षकी सिद्धि नहीं होती मोक्षप्राप्तिमं ध्यान प्रधान कारण है। कहा भी है। “परे मोक्षहेतू " "पर केवलिनः " ३८ तत्त्वार्थसूत्र अर्थात धर्म और शुक्लध्यान ये दोनों ही ध्यान मोक्षके हेतु हैं जिसमें शुक्लध्यान साक्षात् मोक्षका हेतु है इसके विना मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती अतः ध्यानरूपीनिमित्त कारण जीवको मोक्षमें पहुंचा देता है । निमित्त कारणकी अंतिम सीमा यहीं तक है इसलिये वह अपनी सीमाको उलंघन कर आगे नहीं जाता। तथा आत्मा अपने घरमें पहुंच जाता है फिर उसको बाहर फिरने की जरूरत नहीं पडती इसलिये वहां पर उसको निमित्त की जरूरत भी नहीं रहती। इसदृष्टिकोणको लक्षम लेकर भैया भगोतीदासजीने हार जीतकी बात लिखी है। वास्तवमें देखा जाय तो इसमें हार जीत किसी की नहीं है। सब अपने अपने स्वभावमें स्थित है। __सम्यक्त्वकी प्राप्ति भी विना निमित्त के नहीं होती इसलिये भैया भगोती दामजीके उक्त दोहा से कोई यह न समझले कि सम्यक्त्व की प्राप्ति तो स्वमेव विना निमित्तके ही होजाती होगी किन्तु यह बात नहीं है वह भी विना निमित्त के स्वमेव नहीं होता संसार अवस्था में उपादान का कार्य निमित्त मिलनेपर ही होता है अन्य प्रकारसे नहीं।
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