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जैन तत्त्व मीमांसा की
कानजी के मत विरुद्ध है तो भी उसको उद्धृत कर लोगोंको प्रतारित किया है । आगेका उद्धरण छोड दिया है जिसमें श्राचास्पष्टता का नियमका निषेध किया है । वे लिखते हैं
चोदनानुपपत्तेश्च ॥ १० ॥
अर्थ- जो केवल ज्ञानसे ही मोच माननेवाले हैं वा केवल चारित्रसे, वा ज्ञान चारित्र दोनोंसे अथवा सभ्यग्दर्शन सम्यग् ज्ञान और सम्यक चारित्र तीनोंसे मोच मानते हैं उनके शास्त्र में यह कहीं नहीं माना गया कि मन्यको कालब्धिसे मोक्षकी प्राप्ति होती है इसलिये काल मोचाकी प्राप्ति में कारण नही हो सकता । यदि समस्त मतके अनुयायी मोक्षाकी प्राप्ति में कालही कारण मानेंगे तो प्रत्यक्ष वा अनुमान से मोचके कारण निश्चित हैं वे सब विरुद्ध होजायेंगे इसलिये मोक्षकी प्राप्ति में काल किसी तरह कारण नही होसकता ।
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तत्त्वार्थ राजवार्तिकालंकार पृष्ठ १०० वां पूर्वाद्ध स्वर्गीय पं० गजाधरलालजी न्यायतीर्थकृत हिंदी अनुवाद | इसके आगे आपने जो पंचास्तिकायकी गाथा १८ और १८ का प्रमाण दिया है उससे भी आपके मन्तव्यको पुष्टि नहीं होती वृथा ही आपने परिश्रम कर कागद काले किये हैं। वे प्रमाण हैं
इस प्रकार 1
"देवमनुष्यादिपर्यायास्तु क्रमवर्तित्वादुपस्थिता -
तिवाहितस्वसमया उत्पद्यन्ते विनश्यन्ति चेति | १८ |
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