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समीक्षा
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मर्व मिथ्या सिद्ध हो जायगे । क्योंकि क्रम नियमित पर्यायका जब नम्बर आवेगा तव स्वयमेव यह जीव मोक्षमें पहुंच जावेगा उसके लिये प्रयत्न करनेकी । पुरुषार्थ करनेकी ) जरूरत ही नहीं रहनी । परन्तु ऐसा हो नहीं सकता इसलिये ऐसा मानने वालोंको श्राचार्यों ने मिथ्यादृष्टि वतलाया है । देखो समयसार। ..
"वन्ध बढ़ावे अंध व ते आलसी अज्ञान । मुनि हेत करनी करे ते नर उद्यम बान" जो मनुष्य क्रमबद्ध पर्यायकी माता पर विश्वास कर मुक्ति प्राप्त करनेके लिये उद्यन ( पुरुषार्थ) नहीं करता है वह आलम है अज्ञानी है । मुक्ति पानके लिये जा उद्यम करता है वह पुरुषार्थी सम्यग्दृष्टि है । अतः क्रमबद्ध . पाय । मान्यता सत्य समझ कः निर उद्यमी नहीं होना चाहिये। .
ससारी जीवों की क्रमाद्ध पर्याय नहा हाती इसका एक नहीं अनेक उदाहरण प्रत्यक्ष देखने में आते है । उसका न मानना यही तो अज्ञानता है । मैन मंदिर जानेका विचार किया और जानेके लिये प्रस्तुत भो होगया तथा क्रमबद्ध चलना भी आरंभ कर दिया पर वाच ही में ऐसा कर्म का उदय आया कि किमीने छातीमें छुरा भोंक दिया अथवा लडखडा मार गिरगया जिससे वेहोश होगया । मुझे बेहोशीको हालतमें अस्पताल लेगये । यदि कहाजाय कि उस समय ऐमाही होना था मा हुआ इसीका नामही तो कमबद्ध पर्याय है। किन्तु ऐमा मानना ही तो नियतिवाद पाखंड है। देखो गोमट्टमार कर्मकांड "जत्त जदा जण जहा जस्स य णियमेण होदि तत्त तदा तेण तहा तस्स हवे इदि वादो णियदिवादो हु" ८८२ ___ अर्थात जो जिसकाल जिसकरि जैसे जिसके नियम करि है सो तिसकाल ताहिकरि तैसे तिस हो के होय है ऐमा नियमकरि
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