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जन तत्त्व मीमांसा की
आपका यह भी कहना है कि द्रव्यमें पर्याय नियत है वह क्रमशः जिसकालमें उदय में प्रानेवाली हैं उसीकालमें वह उद. यमं आती हैं आगे पीछे नही इसलिये बह क्रमबद्ध है इसके सम्बन्धमें प्रवचनसारकी ६६ वीं गाथा की टीकाका प्रमाण भी दिया है। कि-- ___ "जिसप्रकार विवक्षित लम्बाईको लिये हुये लटकती हुई मोतीकी मालामें अपने अपने स्थानमें चमकते हुये सव मोतीयोंमें आगे आगेके स्थानों में आगे आगेके मोतियोंके प्रगट होनेसे अतएव पूर्वपूर्व के मोतियोंके अस्तंगत होते जानेसे तथा सभी मोतियोंमें अनुस्यूतिके सूचक एक डोरेके अवस्थित होनेसे उत्पाद व्यय धौव्यरूप लक्षण्यप्रसिद्धिको प्राप्त होता है । उसी प्रकार स्वीकृत नित्यत्तिसे निवर्तमान द्रव्यमें अपने अपने कालमें प्रकाशमान होनेवाली सभी पर्यायों में आगे आगेके कालोंमें आगे आगेकी पर्यायोंके उत्पन्न होनेसे अतएव पूर्वपूर्वपर्यायोंका व्यय होनेसे तथा इन सभी पर्यायोंमें अनुस्यूतिको लिये हुये एक प्रवाहके अवस्थित होनेसे उत्पाद व्यय और ध्रौव्य त्रैलक्षण्य प्रसिद्धिको प्राप्त होता है। " इसका स्पष्टीकरण करते हुये आप और लिखते हैं वहते हैं कि___ "इसको यदि और अधिक स्पष्ट रूपसे देखा जाय तो ज्ञात होता है कि भूतकालमें पदार्थमें जो जो पर्याय
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