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समीक्षा
२०१
को उपजतो कहना. परमार्थ नाही ताते अविद्यमान पर्यायकी ही उत्पत्ति कहिये।
"सव्याण पज्जयाणं अविज्जमाणाण होदि उप्पत्ती ।
कालाईलद्धीए अणाइणिहसम्मि दन्यम्मि २४४ हिन्दी टोका-अनादिनिधन द्रव्यविषे काल आदि लब्धी करि सर्व पर्यानिकी अविद्यमानकी ही उत्पत्ति है। भावार्थ-अनादिनिधन द्रव्यविषे काल आदि लन्धि करि पर्याय अविद्यमान कहिये अणती उपजे है ऐसा नाही कि सर्व पर्याय एक हो समय द्रव्यविषे विद्यमान हैं ते ढकते जाय हैं समय समय क्रमते नवे नवे ही उपजे हैं। द्रव्य त्रिकालवर्ती सर्व पर्यायनिका समुदाय है काल भेद करि क्रमते पर्याय होय हैं।
इस कथनसे यह स्पष्ट सिद्ध होगया कि द्रव्यविषे त्रिकालवी सर्व पर्यायें विद्यमान नहीं हैं। अविद्यमान ही समय समय प्रति नवीन ही उपजे हैं और विनसे है । यदि ऐसा न माना जाय तो पदार्थ विषे उत्पाद व्यय को सिद्धि ही नहीं होती । उत्पाद व्यय का अर्थ ही यह होता है कि वर्तमान पर्यायका नाश उत्तर पर्याय की नवीन उत्पत्ति जैसे घट पर्यायका व्यय और कपाल पर्याय की उत्पत्ति । घट और कपाल ये दोनू ही अवस्था मिट्टीको है। तो भी कपाल पर्याय में घट पर्याय विधमान नहीं है । तथा भागामी कपालपर्यायका नाश होकर उसकी दूसरी जो पर्याय होगी वह भी कपाल (खपरा) पर्याय में या उस मिट्टी में विद्यमान नहीं है । ऐसे ही आत्मा में मनुष्य पर्याय मौजूद रहते उस मात्मामें आगे पीछेकी पर्यायें मौजूद (विद्यमान) नहीं रहती किन्तु काललब्धि आदिका जैसा निमित्त कारण मिल जाता है। सासरूप उत्तर पर्याय उत्पन्न हो जाती हैं। यह वात ऊपर में दिये
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