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समीक्षा
और आकाश कुसुमका उदाहरण दिया है वह बिषम है । क्योंकि खरके सींग होते नहीं तथा आकाशके भी फूल लगते नही यह वस्तुस्वभाव है इसको कोई मिटा नहीं सकता और न इसमें कुछ हेर फेर भी किया जा सकता है। किन्तु जिस कारणसे हम वन्धे हुये हैं उस कारणका अभाव होनेसे हम खुलेगे या नहीं ? अवश्य खुलेगे इसलिये खुलने में वन्धका अभाव कारण हुआ या नहीं ? क्या जबतक हम रस्सीसे बंधे रहगें तब तक स्वछंद फिर सकेंगे ? कदापि नहीं। यह बात असत्य है तो ___ "आविद्धकुलाल चक्रवद् व्यपगतलेगलाबुवदेरण्डबीजबदग्निशिखावच्च" यह भी मिथ्या ही सिद्ध होगा जो अभावरूप हेतुसे प्रगट होता है इसलिये कार्योत्पत्तिमें बाधककारण के अभावका भी निमित्त मानना अनिवार्य है । उसको आकाशके कुसुमवत् उडाया नहीं जासकता। ___ यह 'जैनतत्त्वमीमांसा' नहीं है किन्तु कानजी मत पोषण है । इस में केबल कानजीके मतका ही पोषण किया गया है । जैसा वे कहते हैं उसीको घुमा फिराकर आप कहते है। जो जैनागमसे सर्वाथा विपरीत है । जिसप्रकार कानजी कहते हैं कि___ "गुरुके निमित्तसे श्रद्धा (सम्यक्त्व) नहीं होती। किन्तु वह स्वयं अपनी योग्यतासे होती है"
शास्त्रके निमित्तसे ज्ञान नहीं होता किन्तु वह अपनी योग्यतासे होता है" वस्तु विज्ञानसार पृष्ठ ३६ ___ यदि केवलज्ञान उत्पन्न होने में आत्माको वज्रवृषभिनाराचसंहनना महायताकी आवश्यकता पडनलगे तो
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