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जैन तत्त्वमीमांसा की
जावो । तहां उस पुरुषके बहुत ग्राम विषे जानेकी शक्ति तो द्रव्य अपेक्षा पाइये है, अन्य कालविषे समर्थ होय, वर्तमान सामर्थ्यरूप नाही है परन्तु वर्तमान पांच ग्रामनिते अधिक ग्रामनिविषे गमन करसके नाही । वहुरि पांच ग्रामनिविपे जानेकी पर्याय अपेक्षा वर्तमान सामर्थ्यरूप शक्ति ( योग्यता ) है ताते इनि विषे गमन करिसके हैं । वहरि व्यक्तता एकदिन विषै एक ग्रामको गमन करने ही की पाइये हैं तेसे इस जोवके सबको देखनेकी जानने की शक्ति है। बहुरि याको कर्मने क्या अर इतना क्षयोपशम भया कि स्पशादिक विषयनिको जानो वा देखो परन्तु एक कालविषे एक ही को जानो वा देखो। तहां इस जीवके सर्वके देखने जानने की शक्ति (योग्यता) तो द्रव्य अपेक्षा पाइये है (अन्य कालविषे सामर्थ्य होय परन्तु वर्तमान काल में सामर्थ्यरूप नाही) जाते अपनेयोग्य विषयनिते अधिक विषयनि को देखि जानि सके नाही । वहुरि अपने योग्य त्रिषयनको जानने देखनेकी पर्याय अपेक्षा वर्तमान सामर्थ्य रूप शक्ति ( योग्यता ) है ताते इनको देखि जानिसके है । वहुरि व्यक्तता एक कालविषे एकको ही देखनेकी वा जानने की पाइये है बहुरि यहां प्रश्न - जो ऐसे हैं तो जान्या परन्तु क्षयोपशम तो पाइये
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र बाह्य इन्द्रियादिकका अन्यथा निमित्त भये देखना जानना न होय वा थोरा होय । अन्यथा होय सो ऐसे होते कर्म ही का निमित्त तो न रह्या ? ताका समाधान-
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जैसे रोकनहारेने यह कहा कि जो पांच ग्रामनित्रिप एक ग्राम को एक दिन विषे जावो परन्तु इन किकनिका साथ लेकर जावो तहां वे किकर अन्यथा परिणमें तो जाना न होय वा धोरा जाना होय वा अन्यथा जाना होय ! तेसे कर्मका ऐसा ही क्षयोपशम भया हैं जो इतने विषयनिदिष एक विषयको एक कालविषे