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समीक्षा गीके गये ते सब देखिये । वेदनीकर्मके गयेवे निराबायरस मोहनीके गये शुद्धचारित्र विसेखिये । आयुकर्म गये अत्रगाहना अटल होय, नामकर्म गयेते अमूर्तिक देखिये। अगुरु अलघुरूप होय गोत्र कर्म गये, अन्तराध मयेते अनन्तवल लेखिये ।। ___ अर्थात् आठोंकमोंने जीवके अष्ट गुण नष्टसे कर रखे थे जब वे आठों कर्म जिस जीवसे अलग हाजाते हैं तब वह जीव अपनी शक्तियोंको प्रकाशमान कर अपने स्वभावमें स्थित हो आते हैं।
क्या यह कथन मिथ्या है ? कभी नहीं, भापका यह कहना भी मिथ्या है कि___ "सद्भावरूप ही कारण होता है अभावरूपकारण नहीं होता तथा जिस समय केवल पर्याय प्रगट होती है स समय तो जानावरणादि कर्मों । अभाव ही है और प्रभावको कार्यात्पत्तिमें कारण माना नहीं जासकता। यदि अभावको कार्योत्पत्तिमें कारण माना जाय तो खरविषाणको या भावाशकुसुमको भी कायोत्पत्ति में कारण मानना पड़ेगा।
कृष्ट १६ । २० यदि कोई मुर्ख ऐसी बात कहै तो उसपर कोई विचार नहीं आता । किन्तु आप एक सिद्धान्त शास्त्री विद्वान कहला कर भी तध्वशून्य वात कहें तो उसका बड़ा आश्चर्य होता है। क्या 'कार्योत्पत्तिमें पदार्थ का अभाव कारण नहीं पड़ता ? क्या पदार्थ * अभावका निमित्त कारण नहीं होनेसे भी कोई कार्यकी त्पत्ति होती है ? कदापि नहीं । कार्योत्पति में तीन कारण
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